ई-पुस्तकें >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
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शबनम ने ज्योंही स्पिरिट से भरी रुई से बनवारी के चेहरे को छुआ, वह दर्द से बिलबिला उठा।
वह उसकी इस बच्चों वाली हरकत पर मुस्करा पड़ी और बोली-''जवाब नहीं है वार करने वाली का! चेहरा ही दाग दिया!
''चेहरे का यह दाग तो मिट जाएगा शिब्बू! लेकिन दिल का दाग मिटने वाला नहीं है।''
''दया आती है बनवारी तुम पर! जिंदगी-भर जमाना डरता रहा तुमसे और अब तुम डर गए उस मामूली-सी लड़की से! लानत है तुम्हारे जीने पर!''
''शिब्बू!'' वह क्रोध से तिलमिला उठा-''मेरी इज्जत को मत ललकारो, नहीं तो मैं कुछ कर बैठूंगा।''
''क्या कर लोगे! ज़्यादा से ज़्यादा बेचारी का खून कर दोगे। और क्या!''
''हां, शायद अब मुझे यही करना पड़ेगा।''
''जब जुआरी हार जाता है तो वह ऐसी ही बातें करने लगता है।''
''बकवास बन्द करो।''
''लो, चुप हो गई। बस!'' शबनम ने अपने होंठों पर उंगली रख ली और वहां से जाने के लिए उठी।
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