ई-पुस्तकें >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
''क्यों?''
''कहीं वह पाजी फिर न आ जाए।''
''कौन?''
''आपका रिश्तेदार, बनवारी।''
अंजना ने देखा, यह नाम लेते समय उसके अधरों पर एक व्यंग्यात्मक मुस्कान उभर आई। उसने मालकिन की ओर ऐसी नजरों से देखा जैसे बहू उसकी घनिष्ठ सहेली हो और पलटकर बाहर जाने लगी।
''रमिया!''
वह रुक गई।
''राजीव कहां है!''
''बाबूजी के पास।''
''उसे यहां ले आ।''
''अच्छा।''
रमिया चली गई और कमरे में फिर पहले जैसी स्तब्धता छा गई। दूर से अभी तक कुत्तों के भूंकने की आवाजे आ रही थीं।
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