ई-पुस्तकें >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
जब बाबूजी उसके कमरे में पहुंचे तो वह बुत बनी खड़ी थी। उन्होंने जब बत्ती जलानी चाही तो वह जली नहीं। रमिया और घर के दूसरे नौकर भी बाबूजी के पीछे-पीछे वहां चले आए।
''क्या हुआ बहू?'' लाला जगन्नाथ ने हाथ में ली हुई बंदूक का सहारा लेते हुए प्रश्न किया।
वह चुप रही। घर के नौकरों के सामने वह कुछ बोल न सकी। मालिक का इशारा पाते ही सारे नौकर कमरे से बाहर चले गए। लालाजी ने रमिया से लैम्प लाने के लिए कहा और वह धीरे-धीरे चलते हुए बहू के निकट आ गए। अंजना का चेहरा पीला पड़ गया था।
''क्यों बहू! कौन था?''
''बनवारी।'' उसके कांपते होंठों से बस इतना ही निकला।
''ओह! उस कमीने की यह मज़ाल! खैर, घबराओ नहीं, मैं देख लूंगा उसे। तुम सब खिड़कियों के दरवाजे बंद कर लो। मैं अभी पुलिस को खबर करता हूं।''
''नहीं बाबूजी! ऐसे आदमी के मुंह लगना अच्छा नहीं। कहीं वह हमारे घराने की बदनामी का कारण न बन जाए!''
लालाजी ने एक उचटती नजर बहू पर डाली और चुपचाप लौट गए।
इतने में रमिया मिट्टी के तेल का लैम्प अंदर ले आई और उसे पलंग के बराबर वाली मेज पर रख दिया। धुंधली रोशनी कमरे में फैल गई।
अंजना ने देखा रमिया पास खड़ी उसे बड़े ध्यान से देख रही थी। निगाहें टकराते ही वह झेंपकर बोली- ये खिड़कियां बंद कर दूं बहू रानी?''
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