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कटी पतंग

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9582
आईएसबीएन :9781613015551

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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।


अंजना जल्दी से सीढ़ियां पार करके अपने कमरे में पहुंची। इस समय वह अपने-आप में नहीं थी। उसने राजीव की भी परवाह नहीं की जो रमिया के साथ रसोईघर में बैठा खेल रहा था। उसने दरवाजे के किवाड़ बन्द कर लिए और बन्द दरवाजे का सहारा लेकर अपने जीवन के उस भार के बारे में सोचने लगी जो आज हल्का हो गया था।

तभी उसे कमल का ख्याल आया जो उसके हृदय में बस चुका था। यह सोचकर कि उसने खत से सब कुछ जान लिया होगा, वह उसके निकट आ चुकी थी। दोनों ने एक-दूसरे को अपने निश्चय से से भी सूचित कर दिया था। लेकिन अब जब वह देखेगा कि अंजना ने अकस्मात् अपने को बदल लिया है तो वह क्या सोचेगा! उसने अपना विचार शालोँ को भी बता दिया था और यह भी संभव था कि शालो ने अपने पिताजी से बात भी कर ली हो। इन्हीं विचारों ने उसके मन पर एक बोझ बनना शुरू कर दिया और उसके सोचने-समझने की शक्ति क्षीण होने लगी। दिल आतिशदान में पड़े हुए अंगारों की तरह सुलगने लगा।

सहसा उसे अपने कमरे में किसीके मौजूद होने का आभास हुआ। उसके नथने तक जलते हुए सिगरेट की बू पहुंची और वह भय से थर्रा उठी। उसने फटी फटी निगाहों से उस अर्ध-अंधकार में चारों ओर नजर डाली और फिर यकायक उसके मुंह से एक चीख निकलकर कमरे में घुटकर रह गई।

वह बनवारी था। सोफे में धंसा हुआ सिगरेट पी रहा था। अंजना पर नजर पड़ते ही उसने सिगरेट बुझा दी और संभलकर बैठ गया।

अंजना धीरे-धीरे पग बढ़ाती हुई उसके निकट आई और घबराई हुई आवाज में बोली-''तुम! यहां! इस समय!''

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