ई-पुस्तकें >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
''हां अंजू! जब बाहर के उजाले में तुम्हारा दीदार न हो सका तो चुपके से इस अंधेरे में आ छिपा।''
''यों चोरों की तरह यहां घुस आए! कोई क्या कहेगा?''
''कुछ नहीं एक चोर दूसरे चोर के कमरे में घुसा है। कोई खास बात नहीं है।''
बनवारी की इस धृष्टता का कोई उत्तर देने के बजाय उसका शरीर कांपने लगा, लेकिन जल्दी ही उसने संभलकर दीवार पर लगा बिजली का स्विच दबा दिया परन्तु बत्ती नहीं जली।
''रहने दो अंजू! यह चिराग अब तुम्हारे हाथों नहीं जल सकेंगे।''
''क्यो? बत्ती को क्या हुआ?''
''यहां आते ही मैंने तार खींच दिए थे।''
''लेकिन क्यों?'' वह कुछ कठोरता से बोली।
''ताकि मैं आज अंधेरे में ही अपनी पुरानी भेंट को दुहरा सकूं।''
''बनवारी!''
''हां अंजू! उजाले में तो तुमने मुझे पहचानने से इंकार कर दिया था। तुम्हारे ससुर ने आज मनुष्यता के नाते भी मेरा लिहाज नहीं किया और मेरी बेइज्जती कर दी। मुझे फटकार कर घर से चले जाने के लिए कहा। इसीलिए सोचा कि इस अंधेरे में ही तुमसे दो-चार बातें कर ली जाएं।''
''तुम क्या कहना चाहते! हो, बोलो।''
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