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कटी पतंग

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9582
आईएसबीएन :9781613015551

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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।


''एक रास्ता है,'' बाबूजी बोले-''जिससे इस घर की इज्जत भी रह जाएगी और तुम्हारी जिंदगी भी संवर जाएगी।''

''क्या?''

''तुम्हारी जिंदगी का यह राज हम दोनों के सिवा तीसरा और कोई न जान पाए।''

''लेकिन...''

''तुम्हें मेरी बहू ने नया जन्म दिया है। तुम अंजना को भूलकर सदा के लिए पूनम बनी रहो। इसी में हम सबकी भलाई है।''

''बाबूजी...'' भावुकतावश उसकी आंखों में आंसू आ गए और वह सिसिकियां भरती हुई बोली-''मैं आपका यह उपकार जीवन-भर नहीं भूलूंगी। मैं वचन देती हूं कि आपके नाम को कभी बट्टा नहीं लगने दूंगी। मैं आपके बेटे की बहू बनकर अपनी पूरी जिंदगी आपके चरणों में बिता दूंगी। राजीव को मां का पूरा-पूरा प्यार दूंगी। अंजना आज से मर गई। मैं पूनम हूं, आपकी अभागी बहू! आपके चरणों की धूल!''

यह कहते-कहते, उसकी घिग्घी बंध गई। वह और अधिक कुछ न कह सकी। उसे यों लगा जैसे उसका जीवन लहरों के रेले में बहती हुई एक नौका था और आज उसे एक पतवार मिल गई। उसमें जीने की एक नई हिम्मत आ गई। उसके दिल की धड़कनों में छिपा भय सहसा निकल गया। वह एक मचलती हुई लहर की तरह उठी और कमरे से बाहर चली गई।

लाला जगन्नाथ, जो अपनी जगह तकिये का सहारा लिए ज्यों के त्यों बैठे थे, उसके मन की दशा जानकर चिंतित हो उठे।

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