ई-पुस्तकें >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
बाबूजी की जबान की बरछियों का वार वह अधिक देर सहन न कर सकी। वहीं फर्श पर घुटनों के बल बैठकर उसने बाबूजी के पांव पकड़ लिए और उनपर सिर रखकर क्षमा मांगते हुए बोली-''मैं मजबूर थी बाबूजी! आप सब कुछ जान गए हैं। मेरे सीने का बोझ हल्का हो गया है। अब मुझे कुछ नहीं चाहिए। मैंने आपकी थाती आप तक पहुंचा दी है। अब मैं यहां से चली जाऊंगी ओर किसी को कानोंकान खबर नहीं होगी।''
''कहां जाओगी?''
''कहीं भी लेकिन अपनी बदनसीबी की छाया आपके परिवार या उस बच्चे पर कभी नहीं डालूंगी।''
''तुम चली गईं तो इस घर की बदनामी होगी। लोग कहेंगे कि डिप्टी साहब की बहू भाग गई।''
''वह तो मर चुकी, कब की।''
''लेकिन लोग कैसे मानेंगे?''
''मेरे जाने के बाद उनपर सचाई ज़ाहिर हो जाएगी। उन्हें पता चल जाएगा कि मैं कोई धोखेबाज, मक्कार औरत थी।
''या लोग यह समझेंगे कि डिप्टी साहब ने अपनी बहू के गुनाह को छिपाने के लिए ढोंग रचाया है? बदनामी पर पर्दा डालने के लिए यह कहानी गढ़ी है?''
डिप्टी साहब की बात सुनकर वह सकते में आ गई। उनकी इस बात का उसके पास कोई उत्तर नहीं था। इस मजबूरी और बेबसी से बचने का कोई रास्ता नहीं था।
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