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कटी पतंग
कटी पतंग
प्रकाशक :
भारतीय साहित्य संग्रह |
प्रकाशित वर्ष : 2016 |
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ :
ईपुस्तक
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पुस्तक क्रमांक : 9582
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आईएसबीएन :9781613015551 |
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
''हां, और यह भी जान गया हूं कि तुम मेरी बहू नहीं हो बल्कि अंजना नाम की कोई बहरुपिया हो।''
''भगवान मेरा गवाह है, मैंने किसी को धोखा नहीं दिया। वह तो एक वचन था जो मैंने आपकी बहू को दिया था और उसे निभा रही हूं।''
''अगर तुमने ऐसा वचन दिया था, तो फिर उसे तोड़कर तुमने वह खत क्यों लिखा? पूनम से फिर अंजना बनने का फैसला क्यों किया?''
''मैं विवश हो गई। उनके पुराने बंधन और फिर बनवारी जैसे शैतान का भय हर घड़ी मेरी ज़िंदगी को परेशानियों में जकड़े जा रहा था।''
''लेकिन तुमने कभी यह भी सोचा कि तुम्हारी जिंदगी के सारे भेद जानकर कमल पर क्या प्रभाव पड़ेगा?''
''तो क्या वह खत...''
''वह खत उस तक नहीं पहुंचा। वह मेरे पास है।''
वह कोई उत्तर न दे सकी, कोई और बात न कह सकी। मौन हो गई। जब उसके ससुर ने उसके पत्र के प्रभाव की ओर उसका ध्यान दिलाया तो वह परिणाम और सत्य को समझने लगी। उस खत ने भले ही उनकी जिंदगी में भूचाल पैदा कर दिया, लेकिन उसे उस खतरे से बचा लिया था जिससे उसकी जिंदगी छिन्न-भिन्न हो जाती।
यह भेद जानते ही कमल को उससे घृणा पैदा हो जाती और वह शायद फिर कभी उसका नाम तक नहीं लेता।
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