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कटी पतंग

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9582
आईएसबीएन :9781613015551

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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।


''अगर तुम्हें मुझ पर इतना भरोसा होता तो तुम मुझे इस उम्र में कभी धोखा नहीं देतीं, कभी विश्वासघात नहीं करतीं।''

''बाबूजी!'' उसके मुंह से एक चीख-सी निकल गई। वह बुत बनी बाबूजी के चेहरे की ओर देखने लगी, जो अब तक पीलिमा से सुर्ख हो चुका था। वे उसका इम्तहान लेते-लेते ऐसी भयानक बात कह बैठेंगे, इसकी उसे कभी आशा नहीं थी। वह उस उलझन में उलझी मौन खड़ी रही। मन में तरह-तरह के विचारों के बवंडर उठते रहे। हृदय शंकित हो उठा।

''चुप क्यों हो गईं?'' लालाजी ने पूछा।

''लगता है, मेरी ओर से किसीने आपका मन मैला कर दिया है।'' उसने रुक-रुककर धीमी आवाज में कहा।

''तुमने बिल्कुल ठीक कहा है। किसी ने तुम्हारे जीवन के सारे भेद मुझे बता दिए हैं और वह कभी झूठ नहीं कह सकता।''

''कौन है वह?''

लाला जगन्नाथ ने निगाहें उठाकर उसके कांपते हुए होंठों की ओर देखा, लेकिन वे स्वयं अधिक देर तक अपने दिल की बात छिपा नहीं सके। क्षण-भर मौन रहने के बाद बोले-''तुम्हारा खत, जो तुमने कमल को लिखा था।''

उनकी यह बात सुनते ही वह भौंचक्की-सी, ठगी-सी रह गई। उसे ऐसा लगा जैसे किसी ने उसके दिल में तेज धार का चाकू उतार दिया हो। लाज से वह गड़-सी गई।

जब वह अधिक देर तक उनके सामने खड़ी न रह सकी तो रुख बदल लिया और कांपती आवाज में बोली-''तो आपने वह खत...पढ़ लिया?''

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