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कटी पतंग

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9582
आईएसबीएन :9781613015551

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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।


''यह क्या है?''

''अंजू ने यह भेंट दी है राजीव के लिए और वहां जाने के लिए अगर इंकार करो तो कसम रखाई है।''

डिप्टी साहब ने बनवारी को अत्यधिक जिद करते देखा तो बहू को इंकार करने से मना कर दिया। बहू विवश होकर बाबूजी के सामने झुक गई और बोली-''अगर यह बात है बनवारी, तो इसे अपने हाथों ही राजीव को पहना दो।''

''हां हां, कहां है राजीव?''

''ऊपर सो रहा है।'' रमिया ने अन्दर आते हुए कहा और मेज पर रखे चाय के बर्तन समेटने लगी। बनवारी ने जंजीर हाथ में ले ली और अंजना के साथ उसके कमरे में जाने के लिए खड़ा हो गया।

रमिया जल्दी से बाहर चली गई तो बाबूजी बहू से बोले- ''बनवारी बाबू का कहना है कि उनके साले की जमीन है हरिद्वार में गंगा के किनारे।''

''जी!'' अंजना घबरा गई।

''शेखर की मां ने आश्रम के लिए जो जगह लेनी है, बनवारी बाबू से ही क्यों न ले ली जाए! इन्होंने बहुत सस्ते दाम में देने के लिए कहा है।''

''हां पूनम! वह अपना हज़ारी है ना, अंजू का भाई! उसकी जमीन गिरवी पड़ी हुई है। जरूरतमंद है। आधे दामों में मिल जाएगी। कहो तो दिला दें।'

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