लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> कटी पतंग

कटी पतंग

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9582
आईएसबीएन :9781613015551

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

38 पाठक हैं

एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।


बनवारी ने चोर-नजरों से उनकी आंखों ही आंखों में उमड़ती भावनाओं को पढ़ा और अपनी जहरीली मुस्कान को दबाते हुए पूछा-''यही आपके दोस्त का बेटा है?''

''हां, कालेज की छुट्टियों में इसकी बहन अपनी कुछ सहेलियों को साथ लेकर नैनीताल आई हुई है। आज पिकनिक का प्रोग्राम था। बहुत जिद करके वह बहू को भी खींचकर साथ ले गई थी।''

''चलो अच्छा हुआ, जरा दिल बहल गया; और डिप्टी साहब! यह आप जैसे ज़िंदादिल लोगों का ही हौसला है जो जमाने की परवाह किए बिना बहू को इस तरह घूमने-फिरने की इजाजत दे देते हैं।''

''यह तो मेरा कर्तव्य है, धर्म है साहब! बहू और बेटी में कोई अंतर नहीं होता।''

''वाह वाह! क्या बात कही है आपने! अगर आप जैसे ख्यालात के दो-चार और पैदा हो जाएं तो कल्याण हो जाए। हाल ही की बात है, हमारे गांव में एक जमीदार ने अपनी जवान विधवा बहू की अपने हाथों दूसरी शादी कर दी।''

बनवारी की इस छिछोरी बात पर लाला जगन्नाथ ने पहले उसकी ओर कड़ी निगाहों से देखा और बहू को देखा जो यह सुनकर पसीने-पसीने हो गई थी। बाबूजी के होंठ कुछ कहने के लिए फड़के, लेकिन कुछ सोचकर वे चुप हो रहे और बनवारी ने भी अपनी धृष्टता के लिए क्षमा मांग ली।

अंजना वहां से जाने लगी तो बनवारी ने जेब से एक डिबिया निकालकर उसे भेंट की। अंजना ने अचकचाई दृष्टि से उसकी ओर देखा तो उसने डिबिया खोलकर उसकी ओर बढ़ा दी। डिबिया में सोने की एक जंजीर थी जिसे देखते ही वह चौंक उठी।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book