ई-पुस्तकें >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
''हां पूनम! आज अंजू का खत आया था।'' बनवारी तुरंत बोल पड़ा।
अंजू का नाम सुनते ही अंजना को ऐसा लगा जैसे किसी ने तेज धार का छुरा घोंप दिया हो। इससे पहले कि वह कुछ कहती, कमल बोल उठा-''अंजू कौन?''
''मेरी बीवी। पूनम और वह एक साथ पढ़ती थीं। बचपन से एक साथ खेली हैं, इसीलिए उसने मुझे मजबूर किया कि मैं लौटते समय पूनम को साथ लेता आऊं। कुछ दिन के लिए उसका दिल बहल जाएगा और ये अपनी आंटी से मिल लेंगी।''
''मुझे कहीं नहीं जाना है। इन्हें कहिए कि मेरी चिंता न करें।''
''क्यों डिप्टी साहब! मैं न कहता था कि आंटी का नाम सुनकर यह बिगड़ जाएंगी। जब बेचारी पर मुसीबत का पहाड़ टूटा तो किसी ने मदद न दी और आज-खैर, जाने दीजिए।''
कमल ने जब बेसुरी बातों का भंडार खुलता देखा तो जाने की अनुमति चाही। बनवारी और लालाजी ने उसको रुकने के लिए कहा, लेकिन उसने शालो और उसकी सहेलियों का हवाला देते हुए अपनी विवशता बताई। वे सबकी सब बाहर जीप में बैठी उसकी प्रतीक्षा कर रही थीं।
रात का समय और दूरी का ख्याल आते ही लालाजी ने जाने की अनुमति दे दी। कमल अभिवादन करता हुआ बाहर चला गया। जाने से पहले उसने अंजना की ओर देखा तो वह कुछ खोई-खोई-सी थी।
डरते-डरते जब अंजना ने कमल से नजरें मिलाईं तो कमल की मौन निगाहों ने उसके हृदय के भीतर की भावनाओं की चुगली कर दी। अंजना को लगा जैसे वह पुन: कह रहा है- 'मुझे तुम्हारे उत्तर की प्रतीक्षा रहेगी!'
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