ई-पुस्तकें >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
अंजना ने कमल बाबू को साथ आते देखा तो बोली-''आप जाइए, मैं चली जाऊंगी।''
''नहीं, बाबूजी बुरा मानेंगे। जब गेट तक आ गया हूं तो वहां तक जाने में क्या हर्ज है!''
वह बहस न कर सकी और आंचल संवारती हुई तेजी से अन्दर की ओर बढ़ी।
सदर हाल में कदम रखते ही उसे किसी आवाज ने चौंका दिया। कमरे में कोई बैठा बाबूजी से बातें कर रहा था। जानी-पहचानी आवाज से उसके कान खड़े हो गए। उसने पलटकर कमल की ओर देखा और इशारे से अन्दर आने के लिए कहा।
बाबूजी के सामने बनवारी बैठा उनसे बातें बना रहा था। उसे देखते ही अंजना को एक धक्का-सा लगा। उसकी दिन-भर की खुशियों को सहसा किसी मनहूस छाया ने अपनी घिनावनी चादर से ढांप लिया।
वह अपनी कंपकंपी पर अभी काबू न पा सकी थी कि बाबूजी उसे देखते ही बोल उठे-''लो, वह आ गई बहू! मैं न कहता था कि वह आती ही होगी!''
बनवारी ने सिर घुमाकर गहरी नजरों से उसकी ओर देखा। वह वहीं जम-सी गई। उसमें इतनी शक्ति संचारित न हो सकी कि बढ़कर बाबूजी के चरणों को छू ले। इतने में कमल ने आगे बढ़कर बनवारी से हाथ मिलाया।
लाला जगन्नाथ यह देखकर चकित हो गए कि वह बनवारी को पहले से जानता है। उसे बैठने का इशारा करते हुए बोले-''बड़ी देर से बैठे बहू का इन्तज़ार कर रहे थे।''
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