ई-पुस्तकें >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
''यह सब आप लोग जानें, मुझे तो इस बारे में कोई पता नहीं है।''
''तो एक काम करो बहू! उस दिन जो रुपया दिया था न तुम्हें, उसमें से पांच हजार बनवारी बाबू को दे दो। फैसला हो गया तो वहीं बात पक्की हो जाएगी।''
बाबूजी की बात सुनकर अंजना के पांव तले से जमीन खिसक गई। फिर भी जैसे-तैसे उसने अपने-आपको संभाला और बनवारी को साथ लेकर अपने कमरे में चली गई।
कमरे में पहुंचते ही बनवारी ने जंजीर को अपनी उंगलियों में नचाया और राजीव के भोले चेहरे की ओर देखते हुए बोला- ''इसे काजल लगाकर रखा कर। कहीं बुरी नजर न लग जाए।''
अंजना ने पलटकर बनवारी की ओर देखा जो बड़े ध्यान से बच्चे को देख रहा था।
ज्योंही उसने वह जंजीर उसके गले में डालनी चाही, अंजना ने लपककर उसके हाथों से छीन ली और बोली- ''रहने दो। मत छुओ इसे।''
बनवारी ने एक अपने विशेष ढंग से अंजना की ओर देखा जिसके नथने क्रोध से फड़फड़ा रहे थे। वह उसे देखकर मुस्कराया और बोला- ''वाह! जवाब नहीं तुम्हारा! खुद ही प्यार से बुलवाया और खुद ही दुतकारने लगीं।''
''मैंने तुम्हें जान-बूझकर यहां बुलाया है।''
''क्यों?''
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