ई-पुस्तकें >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
''अभी देखा ही क्या है? भइया का घर, चाचाजी की कोठी और सामने के पहाड़।''
शालिनी की इस बात पर सब हंस पड़ी। अंजना के चेहरे पर भी हल्की-सी हंसी खेलने लगी।
कुमुद सबको अपनी ओर आकर्षित करते हुए बोल उठी- ''वाह! क्यों नहीं देखा? वह भी तो देखा है जिसकी भइया सबसे अधिक सराहना करते हैं।''
''क्या?'' आशा पूछ बैठी।
''पूनम।''
कुमुद के मुंह से अपना नाम सुनकर अंजना झेंप गई। आंखें लाज के भार से झुक गईं। वह दबी आवाज में बोली-''अब तुम मुझे बनाने लगीं!''
''नहीं भाभी! सच! वे तो उठते-बैठते तुम्हारी ही तारीफ करते रहते हैं।''
''कहां हैं तुम्हारे भइया?''
''हमें यहां छोड़कर किसी सरकारी काम से चले गए हैं। कह गए हैं कि लौटते समय ले जाएंगे। अभी हम काफी दिन यहां रहेंगे।''
''तब तो खूब मजा रहेगा! मेरा भी मन लग जाएगा!''
थोड़ी देर में ही सब घुलमिल गईं। उनकी चहचहाहट में कुछ देर के लिए अंजना भी अपनी चिंता भूल बैठी। उसे लगा जैसे कुछ ही देर में वह औरत से सहसा एक चंचल लड़की बन गई हो। उसकी घुटी हुई कामनाएं मचल उठीं। जवानी का खुमार अंगड़ाइयां लेने लगा और वह भूल गई कि वह उस घराने की बहू है।
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