ई-पुस्तकें >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
|
7 पाठकों को प्रिय 38 पाठक हैं |
एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
लड़कियों ने जैसे ही झील की सैर का प्रोग्राम बनाया, अंजना उनका साथ देने के लिए सबसे पहले तैयार हो गई। वह तुरंत ही कपड़े बदलकर आ गई और लड़कियों को साथ लेकर झील की ओर चल पड़ी।
शालिनी की भेंट ने अंजना पर जादू कर दिया था। वह उसकी बातों पर मोहित हो गई, लेकिन अपनी गंभीरता की सीमा से बाहर जाने का साहस नहीं था। वह हर बात को तौलकर मुंह से निकालती ताकि शालिनी या उसकी सहेलियों को किसी तरह यह संदेह न हो सके कि वह पूनम नहीं, अंजना है।
उन लड़कियों के मनोरंजन के लिए वह उन्हें झील की सैर कराने लगी। सब लड़कियां एक किश्ती में बैठ गईं और नैनीताल की पहाड़ियों की सराहना करने लगीं। उस साफ-सुथरे नीले पानी में तैरती हुई उनकी नाव झील के दूसरे किनारे की ओर जा रही थी। अंजना अचानक किसी को देखकर झेंप गई। वह प्रफुल्लता, जो उसके चेहरे पर कुछ ही देर पहले से छाई थी, बरबस हवा हो गई।
उनसे कुछ ही दूर पर एक और नाव जा रही थी। बनवारी और शबनम दोनों उसमें बैठे सैर कर रहे थे। बनवारी के सामने शराब से छलकता हुआ गिलास रखा था और शबनम उसके सीने पर सिर रखे लेटी हुई थी। लड़कियों ने जब उन्हें इस ढंग से खुले आम इश्क करते देखा तो झेंप गईं। अंजना के मुंह पर घबराहट से ठंडे पसीने आने लगे और वह लड़कियों की ओर देखती हुई तुरत बोल उठी-''नाव वाले! नाव वापस ले चलो।''
बनवारी ने उसकी व्याकुलता देखी और एक जहरीली मुस्कराहट के छींटे उसपर उछालता हुआ बोला-''बचकर कहां जाएगी?''
लड़कियों की नाव तेजी से दूर चली गई। शांत वातावरण में बनवारी का अट्टहास गूंज उठा और उसने शराब का गिलास गले में उंडेल लिया।
|