ई-पुस्तकें >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
यह सोचते ही उसके पतित शरीर ने एक दुखदायी अंगड़ाई ली।
वह उस पीड़ा से कराह उठा जिसने उसके सामने अतीत की उन रंगीन स्मृतियों को बिखेर दिया जब वह कालेज में पढ़ती थी और एक भोली-सी, नारी-सुलभ स्वभाव की तरुणी थी जो उसके झूठे प्यार को सच समझकर उसकी दीवानी हो गई थी।
इतने में धूएं की धुंध छंट गई और वह चेहरा आंखों से ओझल हो गया। अब उसके सामने शबनम का चेहरा उभर आया जो अभी-अभी बाहर से अन्दर आई थी और उसकी गम्भीर मुद्रा देखकर चुपचाप खड़ी हो गई थी।
वह चौंक पड़ा। लेटे-लेटे ही सिगरेट को एक ट्रे में बुझा दिया। शबनम आईने के सामने चली गई और अपना झिलमिलाता लिबास उतारने लगी।
बनवारी ने दूसरा सिगरेट सुलगा लिया।
''भेंट हुई?'' शबनम ने अपने कपड़े एक ओर रखते हुए पूछा। वह अब अंदरूनी कपड़ों में थी और दर्पण में प्रतिबिंबित बनवारी के चेहरे को ध्यान से देखने लगी।
''जैसा मैंने सोचा था, वैसा ही हुआ। वह ठीक छ: बजे पार्क में आ गई।''
शबनम ने सेंट की सुराहीदार शीशी उठाई और उसके फव्वारे अपने पूरे बदन पर छिड़कती हुई बोली-''क्या कहा उसने?''
''मेरा साथ देने से इंकार कर दिया।''
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