ई-पुस्तकें >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
आज वह परेशान था। उसे कुछ अच्छा नहीं लग रहा था। वह उसी बेचैनी में अपने कमरे के भीतर चला आया और बड़े जोर से दरवाजा बंद कर लिया।
संगीत की धुन खत्म हो गई। तालियों की आवाज से हाल गूंज रहा था।
बनवारी ने लापरवाही से अपना कोट सामने की कुर्सी पर फेंक दिया। गले की टाई ढीली की और थका हुआ शरीर लेकर बिस्तर पर पसर गया। तकिये का सहारा लेकर वह कमरे को ध्यान से देखने लगा जो एक नर्तकी की भांति ही सजा हुआ था और न जाने कितने मुसाफिर वहां आकर ठहर चुके थे। वह सजावट ठीक शबनम जैसी थी जो मेकअप और चमकीले कपड़ों में परियों जैसी लगती थी लेकिन अन्दर से उस फर्नीचर की तरह पुरानी और खोखली थी जिसे होटलवालों ने खूबसूरत कपड़े पहनाकर और रंग-रोगन करके नया बना रखा था।
उस कमरे के अंधेरे कोनों में से शबनम के पसीने की गंध अब भी आ रही थी, लेकिन उस दुर्गन्ध को इस तरह सजा-धजाकर दूर करने का असफल प्रयास किया गया था जिस तरह शबनम यू डी क्लोन की सुगन्ध से अपनी गंध दूर करने का प्रयास करती थी लेकिन सफल नहीं होती थी।
व्याकुल मस्तिष्क को शांत करने के लिए उसने दुबारा सिगरेट सुलगाया और लम्बे-लम्बे कश लेने लगा। जरा-सी देर में ही उस कमरे में सिगरेट का धुआं फैल गया और उसे उस धुएं में छिपा हुआ वह चेहरा नजर आया जो शबनम से बिल्कुल अलग था। वह अंजना का भोलाभाला और गुलाबी चेहरा था जो आज उसके कारण वियोगिनी बनी हुई थी, विधवा बनी हुई थी, ब्याह के बिना उस बच्चे की मां कहलाती थी जो न जाने किसका था!
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