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कटी पतंग

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9582
आईएसबीएन :9781613015551

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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।


उसकी वह सिसकियां, वह विलाप वहीं दबकर रह गया। उसके दिल की दशा कोई नहीं जान सका। घरवाले उसे एक आदर्श नारी समझते थे। कमल बाबू उसे सचमुच पूनम समझकर उसके लिए अपने हृदय में अपार सहानुभूति और प्यार रखते थे; लेकिन अंजना से उन्हें बड़ी घृणा थी, क्योंकि उसने शादी की रात उनसे दगा की थी।

बनवारी तो उसे एक गुड़िया समझता था और उसकी कमजोरियों की आड़ लेकर उसकी जिंदगी से खेलने पर तुला हुआ था। इनमें कोई भी ऐसा नहीं था जो उसके दिल की सच्चाई की थाह पा सकता और उसके सीने में छिपे दर्द की पीड़ा का अनुमान लगा सकता।

बनवारी नेहरू पार्क से सीधा होटल चला गया। उसकी निराशा में आशा की एक झलक विराजमान थी। उसे अपनी चाल पर पूरा भरोसा था।

उसने सिगरेट का जलता हुआ टुकड़ा होटल के मेनगेट पर फेंक दिया और हाल में चला गया जहां शबनम का नृत्य हो रहा था। वाद्ययंत्रों की पाश्चात्य रोमांटिक धुन, हाल की धुंधली रोशनी, सुरा से मदमाते लोग और उसपर शबनम का लहराता-थिरकता अर्धनग्न शरीर दर्शकों पर बिजलियां गिरा रहा था।

बनवारी ने उस सुरम्य सुरबाला को अजीब निगाहों से देखा। उस रमणी की एक साधारण-सी झलक पाकर सैकड़ों लोग लोट-पोट हो रहे थे, लेकिन बनवारी पर उसका तनिक भी प्रभाव नहीं था। वह उस कसाई की तरह उसके गोश्त-पोस्त को देखने-परखने लगा जो किसी भेड़ का झटका करने से पहले उसे टटोल-टटोलकर देखता है। शबनम के जवान शरीर में जो गरमी थी वह उसके लिए बर्फ बन चुकी थी। शबनम ने नाचते-नाचते ज्योंही उसपर नजर फेंकी उसने लापरवाही से मुंह फेर लिया और तेजी से सीढ़ियों की ओर बढ़ते हुए अपने कमरे में चला गया।

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