लोगों की राय
ई-पुस्तकें >>
कटी पतंग
कटी पतंग
प्रकाशक :
भारतीय साहित्य संग्रह |
प्रकाशित वर्ष : 2016 |
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ :
ईपुस्तक
|
पुस्तक क्रमांक : 9582
|
आईएसबीएन :9781613015551 |
 |
|
7 पाठकों को प्रिय
38 पाठक हैं
|
एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
11
अंजना ने जब शिव मन्दिर में कदम रखा तो उसका रोम-रोम किसी अनजाने भय से सिहर उठा। वह उस मन्दिर में दिल के पाप को छिपाए चली गई। वह शेखर की विधवा न होते हुए भी उसके मां-बाप के साथ उसकी स्मृति के पुष्पों को चुनने आई थी।
आज लाला जगन्नाथ के बुज़ुर्गों का दिन था। वे श्राद्ध के दिनों में सदा इसी मन्दिर में आते थे और ब्राह्मणों को खाना खिलाते थे, गरीबों को दान देते और दिन-भर भगवान के चरणों में बैठकर पूजा-पाठ में दिन बिता देते।
आज भी इसी विचार से पत्नी और बहू को साथ लेकर वे शिव मन्दिर में आए थे। परिवार के बुज़ुर्गों की याद के साथ-साथ अपने जवान बेटे की मौत की याद में भी श्रद्धांजलि भेंट करने आए थे।
अंजना एक मासूम बच्चे की भांति पुरोहितों के कहने पर वह सब कुछ किए जा रही थो जो शेखर की विधवा को करना चाहिए था। दिन-प्रतिदिन का जीवन उसके लिए एक परीक्षा बनता जा रहा था और वह इस परीक्षा में सफल होने के लिए भरसक प्रयत्न कर रही थी। लेकिन आज जब उसने अपने भय और पाप को आंचल में समेटे शिव मन्दिर में प्रवेश किया तो उसके अंग-अंग में सिहरन दौड़ गई। उसने कांपते हाथों से फूलों की कलियां मूर्ति के चरणों में चढ़ा दीं।
दूर एक कोने में कोई संन्यासी ऊची आवाज में किसीको समझा रहा था- ''सत्य और प्रेम किसी सच्चे हृदय में ही निवास करते हैं। जिमके मन में कुछ हो और संसार के सामने वह कुछ और जताए, वह मनुष्य सच्चे प्यार का अधिकारी नहीं होता। छल और कपट के संसार में रहने वाला न तो आप सुखी रहता है और न किसी को सुख दे सकता है।''
...Prev | Next...
मैं उपरोक्त पुस्तक खरीदना चाहता हूँ। भुगतान के लिए मुझे बैंक विवरण भेजें। मेरा डाक का पूर्ण पता निम्न है -
A PHP Error was encountered
Severity: Notice
Message: Undefined index: mxx
Filename: partials/footer.php
Line Number: 7
hellothai