ई-पुस्तकें >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
आवाज सुनते ही वह हड़बड़ाकर उठ बैठी और अपनी मालकिन को अचानक सामने देखकर बौखला गई।
''योंही जरा आंख लग गई थी, बहू रानी!''
''कोई बात नहीं। राजीव रोया तो नहीं था?''
''बस जरा-सा, और फिर दूध पीते ही सो गया।''
रमिया की बात से सन्तुष्ट होकर अंजना अल्मारी के पल्ले का ओट होकर कपड़े बदलने लगी। उसने ज्योंही गीली साड़ी उतारकर एक ओर रखी, रमिया ने बढकर उसे उठा लिया और बोली-''बाहर बरखा हो रही है क्या?''
''हां, लगता है तू घोड़े बेचकर सो रही थी।''
रमिया ने कोई जवाब नहीं दिया और गीली साड़ी फैलाने लगी।
अंजना ने जल्दी से साड़ी बदली और बाबूजी के बारे में पूछा।
रमिया बोली-''वे शायद अपने कमरे में होंगे।'' और बाहर जाते हुए जरा रुककर पूछा-''आपके लिए खाना लगाऊं बहू रानी!''
''नहीं, मुझे भूख नहीं है।''
रमिया चली गई और अंजना फिर अपने ख्यालों में खो गई, जिनसे वह दूर भागना चाहती थी। उसके कानों में अभी तक कमल के वे शब्द सनसना रहे थे और उसे आभास हो रहा था कि पिछले कई दिनों से वह स्वत: उसकी ओर खिंचती जा रही थी। घंटों चुप-चाप बैठी मन ही मन वह कमल की बातों को दुहराया करती थी। उसकी परछाइयों से अपना दिल बहलाया करती थी और फिर दिल के किसी कोने में अनजाने चुभन की पीड़ा से व्याकुल हो उठती।
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