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कटी पतंग

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9582
आईएसबीएन :9781613015551

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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।


''क्या?'' अंजना के होंठ थरथराए।

''तुम अपनी उदासियों को मेरी झोली में उंडेल दो।''

''फिर क्या होगा?''

''मैं तुम्हारे आंचल में उल्लास के सितारे जड़ दूंगा।''

अंजना एकदम चुप हो गई और उसने शोकातुर आंखों से कमल की ओर देखा जिसने अपना सब कुछ उसके सामने खोलकर रख दिया था। वह मौन ही रही और सोचती रही कि कहीं उसकी 'हां' या 'ना' से उसकी आराधना न टूट जाए और फिर वह जीप गाड़ी के वातावरण से उकताकर बोली-''नहीं, ऐसा सोचना भी पाप है।''

इतना कहते ही वह जीप से झट उतर आई। कमल ने अचरज से उसकी ओर देखा, लेकिन अंजना ने मुंह मोड़ लिया। वर्षा की परवाह किए बिना वह फाटक की ओर बढ़ती चली गई। कमल ने उसे रोकने के लिए एक बार पुकारा भी, लेकिन वह रुकी नहीं।

अंजना तेजी से चलती हुई अपनी कोठी के पार्लर में आ रुकी। वह बरसात के छींटों से भीग चुकी थी। चोर-निगाहों से उसने गेट की ओर देखा। जीप अभी तक खड़ी थी। कमल उसी तरह बैठा सिगरेट के हल्के-हल्के कश ले रहा था।

सहसा उसने गाड़ी स्टार्ट की और अंजना ने संतोष की एक गहरी सांस ली। अपने भीगे हुए कपड़ों को समेटते हुए वह अन्दर चली गई और दबे पांव सीढ़ियां चढ़कर अपने कमरे में पहुंची।

राजीव सो चुका था। रमिया उसके पलंग का सहारा लिए फर्श पर बैठी ऊंघ रही थी। अंजना ने एक निगाह बच्चे को देखा और रमिया को धीमी आवाज से पुकारा।

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