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जलती चट्टान

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :251
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9579
आईएसबीएन :9781613013069

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हिन्दी फिल्मों के लिए लिखने वाले लोकप्रिय लेखक की एक और रचना

‘नहीं राजन, अभी तुम्हें चुप रहना होगा।’

‘तो क्या?’

‘दो-चार दिन बीतने पर मैं स्वयं बाबा से कह दूँगी।’

‘यदि वह न मानें तो?’

‘तो।’ पार्वती के मुँह से निकला ही था कि आँगन में किसी की आहट सुनाई पड़ी। किवाड़ खोल राजन तुरंत वापस चला गया। पार्वती काँपते हाथों के कुण्डा बंद कर रही थी कि दियासलाई के प्रकाश के साथ ही किसी की गरज सुनाई दी। पार्वती के हाथ से कुण्डा झूट गया, वह चीख पड़ी। हाथ में दिसासलाई लिए बाबा खड़े थे। उनके क्रोधित नेत्रों से मानों अगांरे बरस रहे थे। वह पार्वती की ओर बढ़े। पार्वती आगे से हट गई। हवा की तेजी से ड्योढ़ी के किवाड़ खुल गए। बाबा ने बाहर झाँक कर देखा, दूर कोई शीघ्रता से जा रहा था और भौंकते कुत्ते उसका पीछा कर रहे थे।

बाबा ने किवाड़ बंद किए और पलटकर पूछा -

‘कौन था?’

पार्वती ने कोई उत्तर न दिया और सिर नीचा किए चुपचाप खड़ी रही। बाबा कदम बढ़ाते कमरे में लौटने लगे, पार्वती भी सिर नीचा किए धीरे-धीरे पग बढ़ाती उनके पीछे हो ली।

जब दोनों कमरे में पहुँचे तो बाबा ने पूछा -

‘कौन था वह?’

‘राजन!’ पार्वती ने काँपते स्वर में उत्तर दिया।

‘वह तो मैं जानता हूँ, परंतु इतनी रात गए यहाँ क्या लेने आया था?’

‘मुझसे मिलने।’

बाबा ने मुँह बनाते हुए कहा और फिर क्रोध में बोले - ‘क्या यह भले आदमियों का काम है।’

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