ई-पुस्तकें >> जलती चट्टान जलती चट्टानगुलशन नन्दा
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हिन्दी फिल्मों के लिए लिखने वाले लोकप्रिय लेखक की एक और रचना
बाबा चुपचाप वहाँ खड़े रहे। माधो उनके दिल में आग सी भड़काकर चला गया था। वह धीरे-धीरे बरामदे में पहुँचे। तख्तपोश पर बैठ सोचने लगे। उनके सामने पार्वती की मुखाकृति और माधो के कहे शब्द गूँज रहे थे। पार्वती देवता को छोड़ मनुष्य के आगे झुक सकती है – उन्हें विश्वास न हो पाता था और फिर ‘सीतलवादी’ में ऐसा हो भी कौन सकता है। उन्होंने अपने मन को काफी समझाने का प्रयत्न किया परंतु माधो की बात रह-रहकर उन्हें अशांत कर देती थी।
जब अधीर हो उठे तो अपना दुशाला ओढ़ मंदिर की ओर हो लिए। ड्योढ़ी से निकलकर उन्होंने एक बार चारों ओर देखा और फिर आगे बढ़े। सारी ‘सीतलवादी’ आज नदी के तूफान सी गूँज रही थी। पहाड़ी पर बर्फ पिघलने से नदी में जल अधिक था। यह बढ़ता जल शोर-सा कर रहा था जो शाम की नीरवता में बढ़ता ही जा रहा था। दिल बेचैन-सा हो रहा था। वह शीघ्रता से पग बढ़ाते मंदिर की ओर बढ़े जा रहे थे। उन्हें लग रहा था, जैसे तूफानी नदी उनके अंतस्थल में कहीं दहाड़ उठी हो।
मंदिर पहुँचते ही जब वह सीढ़ियों पर चढ़ने लगे तो पाँव काँप रहे थे। साँझ के अंधेरे की कालिमा भयभीत कर रही थी, मानों किसी अंधेरी गुफा में प्रवेश कर रहे हों। मंदिर की आरती का स्वर सुनाई दे रहा था।
बाबा ने देवता को प्रणाम किया और सबके चेहरों को देखने लगे। सब लोग आँखें मूँदे आरती में मग्न थे। जब उन्होंने देखा कि पार्वती वहाँ नहीं है, तो उनके पाँव के नीचे की मानों धरती निकल गई। उनके मन में माधो के शब्द घर कर गए। वह चुपचाप मंदिर के बाहर नदी की ओर सीढ़ियाँ उतरने लगे, नदी का जल चट्टानों से टकरा-टकराकर छलक रहा था मानों बाबा को माधो के शब्द याद दिला रहा हो - ‘यौवन और तूफान का क्या भरोसा, किसी भी समय सिर से उतर सकते हैं?’
जैसे ही बाबा ने सीढ़ियों से नीचे कदम बढ़ाया कि उनके कानों में किसी के हँसने का स्वर सुनाई पड़ा – निश्चय ही पार्वती का स्वर था। वह शीघ्रता से सीढ़ियों के पीछे छिप गए। उसके साथ राजन था। दोनों को यूँ देखकर बाबा का दिल जल उठा। पार्वती ने राजन को हाथ से ऊपर की ओर खींचा।
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