ई-पुस्तकें >> जलती चट्टान जलती चट्टानगुलशन नन्दा
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हिन्दी फिल्मों के लिए लिखने वाले लोकप्रिय लेखक की एक और रचना
माधो ने एक मजदूर से कोयले की थैली मँगवाई और उसे तार से लपेटते हुए भारी लोहे के कुण्डों से लटका दिया – ज्यों ही माधो ने हाथ छोड़ा थ़ैली तार पर यों भागने लगी – मानों कोई वस्तु हवा में उड़ती जा रही हो – पल भर में वह नीचे पहुँच गई – राजन मुस्कुराते हुए बोला –‘सब समझ गया – यह कोयला थैलियों में भर-भरकर तार द्वारा स्टेशन तक पहुँचाना है।’
‘केवल पहुँचाना ही नहीं – बल्कि सब हिसाब से रखना है और सांझ को नीचे जाकर मुझे बताना है – मैं यह कोयला मालगाड़ियों में भरवाता हूँ।’
‘ओहो! समझा! और वापसी में थैलियाँ मुझे ही लानी होंगी।’
‘नहीं – इस कार्य के लिए गधे मौजूद हैं।’
राजन यह उत्तर सुनते ही मुँह फेरकर हँसने लगा, और नाक सिकोड़ता हुआ नीचे को चल दिया।
माधो के कहने के अनुसार राजन अपने काम में लग गया। उसके लिए यह थैलियों का तार के द्वारा नीचे जाना – मानों एक तमाशा था – जब थैली नीचे जाती तो राजन यों महसूस करता – जैसे कुण्डे के साथ लटका हुआ हृदय घाटियों को पार करता जा रहा हो, वह यह सब कुछ देख मन ही मन मुस्करा उठा – परंतु काम करते-करते जब कभी उसके सम्मुख रात्रि वाली वह सौंदर्य प्रतिमा आ जाती तो वह गंभीर हो जाता – फिर यह सोचकर कि उसने कोई स्वप्न देखा है – भला इन अंधेरी घाटियों में ऐसी सुंदरता का क्या काम? सोचते-सोचते वह अपने काम में लग जाता।
काम करते-करते चार बज गए – छुट्टी की घंटी बजी – मजदूरों ने काम छोड़ दिया और अपने-अपने वस्त्र उठा दफ्तर की ओर बढ़े।
‘तो क्या छुट्टी हो गई?’ राजन ने एक से पूछा।
‘जी बाबूजी – परंतु आपकी नहीं।’
‘वह क्यों?’
‘अभी तो आपको नीचे जाकर माधो दादा को हिसाब बतलाना है।’
और राजन शीघ्रता से रजिस्टर उठा घाटियों में उतरती पगडंडी पर हो लिया – जब वह स्टेशन पहुँचा तो माधो पहले से ही उसकी राह देख रहा था – राजन को यह जानकर प्रसन्नता हुई कि पहले ही दिन हिसाब माधो से मिल गया – हिसाब देखने के बाद माधो बोला -
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