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जलती चट्टान

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :251
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9579
आईएसबीएन :9781613013069

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हिन्दी फिल्मों के लिए लिखने वाले लोकप्रिय लेखक की एक और रचना

प्रातःकाल होते ही राजन मैनेजर के पास पहुँच गया-

वह पहले से ही उसकी प्रतीक्षा में बैठा हुआ था – उसे देखते ही बोला - ‘आओ राजन! मैं तुम्हारी ही राह देख रहा था।’

फिर सामने खड़े एक पुरुष से बोला -

‘माधो! यह हैं वह युवक जिनकी बात अभी मैं कर रहा था!’ और राजन की ओर मुख फेरते हुए बोला - ‘राजन इनके साथ जाओ – ये तुम्हें काम समझा देंगे आज से तुम इस कंपनी में एक सौ रुपये वेतन पर रख लिए गए हो।’

‘मैं किस प्रकार आपका धन्यवाद करूँ?’

‘इसकी कोई आवश्यकता नहीं – परंतु देखो – कार्य काफी जिम्मेदारी का है।’

‘इसके कहने की कोई आवश्यकता नहीं – मैं अच्छी प्रकार समझता हूँ।’ कहते हुए राजन माधो के साथ बाहर निकल गया।

थोड़ी दूर दोनों एक टीले पर जाकर रुक गए – माधो बोला -

‘राजन! यह वह स्थान है – जहाँ तुम्हें दिन भर काम करना है।’

‘और काम क्या होगा – माधो?’

‘यह सामने देखते हो – क्या है?’

‘मजदूर... सन की थैलियों में कोयला भर रहे हैं।’

‘और वह नीचे!’ माधो ने टीले के नीचे संकेत करते हुए पूछा।

राजन ने नीचे झुककर देखा – एक गहरी घाटी थी – उसके संगम में रेल की पटरियों का जाल बिछा पड़ा था।

‘शायद कोई रेलवे स्टेशन है।’

‘ठीक है – और यह लोहे की मजबूत तार, जो इस स्थान और स्टेशन को आपस में मिलाती है जानते हो क्या है?’

‘टेलीफोन!’

हँसते हुए कहा –‘नहीं साहबजादे! देखो मैं समझता हूँ।’

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