ई-पुस्तकें >> जलती चट्टान जलती चट्टानगुलशन नन्दा
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हिन्दी फिल्मों के लिए लिखने वाले लोकप्रिय लेखक की एक और रचना
न जाने कितनी देर तक वह इन्हीं मीठी कल्पनाओं में डूबा सीढ़ियों पर बैठा रहा। अचानक वही रुन-झुन उसे फिर सुनाई पड़ी। शायद वह पूजा के पश्चात् लौट रही थी। राजन झट से सीढ़ियों पर लेट गया। धीरे-धीरे पाजेब की झंकार समीप आती गई। अब वह सीढ़ियों से उतर रही थी तो न जाने राजन को क्या सूझी कि उसने सीढ़ियों पर आंचल पकड़ लिया। लड़की ने आंचल खींचते-खींचते मुँह बनाकर कहा - ‘यह क्या है?’
राजन कुछ देर उसे चुपचाप देखता रहा फिर बोला -
‘शायद पाँवों से ठोकर तुम्हीं ने लगाई थी।’
‘हाँ तो यह गलती मेरी ही थी।’
‘केवल गलती मानने से क्या होता है।’
‘तो क्या कोई दण्ड देना है?’
‘दण्ड, नहीं तो... एक प्रार्थना है।’
‘क्या?’
‘जिस प्रकार तुमने मंदिर जाते समय अपना पाँव मेरे वक्षस्थल पर रखा था – उसी प्रकार पाँव रखते हुए सीढ़ियाँ उतर जाओ।’
‘भला क्यों?’
‘मेरी दादी कहती थी कि यदि कोई ऊपर से फाँद जाए तो आयु कम हो जाती है।’
‘ओह! तो यह बात है – परंतु इतने बड़े संसार में एक-आध मनुष्य समय से पहले चला भी जाए तो हानि क्या है?’
इतना कहकर हँसते-हँसते सीढ़ियाँ उतर गई – राजन देखता का देखता रह गया – पाजेब की झंकार और हँसी देर तक उसके कानों में गूँजती रही।
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