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जलती चट्टान

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :251
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9579
आईएसबीएन :9781613013069

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हिन्दी फिल्मों के लिए लिखने वाले लोकप्रिय लेखक की एक और रचना

स्नान के पश्चात् उसने वस्त्र बदल डाले और मैले वस्त्रों को गठरी में बाँध, नदी के किनारे-किनारे हो लिया।

सूर्य देवता दिन भर के थके विश्राम करने संध्या की मटमैली चादर ओढ़े अंधकार की गोद में मुँह छिपाते जा रहे थे। राजन की आँखों में नींद भर-भर आती थी। वह इतना थक चुका था कि उसकी द़ष्टि चारों ओर विश्राम का स्थान खोज रही थी। दूर उसे कुछ सीढ़ियाँ दिखाई दीं। वह उस ओर शीघ्रता से बढ़ा।

वे सीढ़ियाँ एक मंदिर की थीं – जो पहाड़ियों को काटकर बनाया गया था और बहुत पुराना प्रतीत होता था। वह सीढ़ियों पर पग रखते हुए मंदिर की ओर बढ़ा – परंतु चार-छः सीढ़ियाँ बढ़ते ही अपना साहस खो बैठा। गठरी फेंक वहीं सीढ़ियों पर लेट गया, थकावट पहले ही थी – लेटते ही सपनों की दुनिया में खो गया।

डूबते हुए सूर्य की वे बुझती किरणें मंदिर की सीढ़ियों पर पड़ रही थीं। धीरे-धीरे सूर्य ने अपनी उन किरणों को समेट लिया। ‘सीतलवादी’ अंधकार में डूब गई – परंतु पूर्व में छिपे चन्द्रमा से यह सब कुछ न देखा गया। उसने मुख से घूँघट उतारा और अपनी रजत किरणों से मंदिर की ऊँची दीवारों को फिर जगमगा दिया। ऐसे समय में नक्षत्रों ने भी उनका साथ दिया। मंदिर की घंटियाँ बजने लगीं – परंतु राजन निद्रा में मग्न उन्हीं सीढ़ियों पर सो रहा था।

अचानक वह नींद में चौंक उठा। उसे ऐसा लगा – मानों उसके वक्षस्थल पर किसी ने वज्रपात किया हो। अभी वह उठ भी न पाया था कि उसके कानों में किसी के ये शब्द सुनाई पड़े - ‘क्षमा करिए – गलती मेरी है। मैं शीघ्रता में यह न देख सकी कि कोई सीढ़ियों पर सो रहा है। मेरा पाँव आपके वक्षस्थल पर पड़ गया।’

राजन ने पलटकर देखा- उसके सम्मुख एक सौंदर्य की प्रतिमा खड़ी थी। उस सुंदरी के हाथों में फूल थे – जो शायद मंदिर के देवता के चरणों को सुशोभित करने वाले थे। ऐसा ज्ञात होता था- मानों चन्द्रमा अपना यौवन लिए हुए धरती पर उतर आया हो।

राजन ने नेत्र झपकाते हुए सोचा – कहीं वह स्वप्न तो नहीं देख रहा। परंतु यह एक वास्तविकता थी।

राजन अब भी मोहाछन्न-सा उसी की ओर देखे जा रहा था। सुंदरता ने मर्म भेदी दृष्टि से राजन की ओर देखा और सीढ़ियाँ चढ़ते-चढ़ते मंदिर की ओर चल दी। उसके पाँवों में बंधी पाजेब की झंकार अभी तक उसके कानों में गूँज रही थी और फूलों की सुगंध वायु के धीमे-धीमे झोंके से अभी तक उसे सुगंधित कर रही थी।

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