ई-पुस्तकें >> जलती चट्टान जलती चट्टानगुलशन नन्दा
|
1 पाठकों को प्रिय 253 पाठक हैं |
हिन्दी फिल्मों के लिए लिखने वाले लोकप्रिय लेखक की एक और रचना
पार्वती जब राजन के करीब पहुँची तो अचानक उसे हाथ ‘वायलन’ पर रुक गए और वह उसकी ओर देखने लगा। पार्वती के पास एक लाल गुलाब था। राजन ने ‘मिंटो वायलन’ एक किनारे रख दिया और स्वयं आगे आ पार्वती के हाथों फूल ले उसके बालों में खोंस दिया। लाल फूल तथा लाल शाल उस बर्फीले स्थान पर एक अनोखी शोभा दे रहे थे। दोनों के गर्म-गर्म श्वासों का धुँआ हवा में उड़ रहा था। फिर उड़ते-उड़ते आपस में मिल गया। दोनों यह देखकर मुस्कुरा उठे और राजन बोला –
‘पार्वती! सुना है जाड़ों में फूल कुम्हला जाते हैं।’
‘हाँ तो।’
‘फिर यह फूल कहाँ से आया?’
‘प्रेम के फूल कभी नहीं कुम्हलाते और फिर यह....।’ पार्वती जोर-जोर से हँसने लगी। राजन उसकी यह हरकत देख अचंभे में पड़ गया। थोड़ी देर बाद उसे यूँ हँसते देख बोला -
‘इसमें हँसी की क्या बात है?’
‘तुम्हारी फूलों की पहचान देख।’ और फिर वह हँसने लगी, राजन कुछ संदेह में पड़ गया। फिर तुरंत ही वह बालों से उतार उसे देखने लगा। वह कपड़ों का बना हुआ था। वास्तविकता और नकल में कोई अंतर दीख नहीं पड़ता था। जब उसने फूल से दृष्टि उठा पार्वती की ओर देखा तो वह प्रसन्नता के मारे फूली नहीं समा रही थी।
राजन ने फूल दोबारा उसके बालों में लगा दिया और आनंद विह्वल हो पार्वती को अपने गले से लगा लिया। पार्वती की नजर जब राजन के वस्त्रों पर पड़ी तो बोल उठी - ‘यह क्या?’
‘क्यों क्या है?’
‘इतना जाड़ा और शरीर पर एक ही कुर्ता।’
‘यह भी न हो तो कोई अंतर नहीं पड़ता।’
‘यदि तुम्हें कुछ हो गया तो।’
|