ई-पुस्तकें >> जलती चट्टान जलती चट्टानगुलशन नन्दा
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हिन्दी फिल्मों के लिए लिखने वाले लोकप्रिय लेखक की एक और रचना
आज वह मंदिर के बंद देवताओं को छोड़ प्रकृति की गोद में नाच रही थी। राजन भी मिंटो वायलन बजाता उसके साथ-साथ जाने लगा। अंतिम चट्टान पर वह रुक गई और तेजी से नाचने लगी। राजन की उंगलियाँ भी वायलन के तारों पर तेजी से थिरक रही थीं। दोनों एक-दूसरे की ताल में खो गए।
अचानक वायलन का तार टूट गया। तार के टूटते ही पार्वती की पाँव फिसला और वह नीचे जा गिरी। राजन चिल्लाया - ‘पार्वती.... पार्वती’ परंतु पार्वती की एक चीख सुनाई दी और सन्नाटा छा गया। राजन तेजी से नीचे पहुँचा, पार्वती पत्थरों पर पड़ी कराह रही थी। सिर से रक्त बह रहा था।
राजन के पाँव तले की धरती निकल गई। वह बहुत घबराया। फिर शीघ्रता से उसे अपनी बाँहों में उठा लिया, पार्वती मूर्छित हो गई थी। चारों ओर बादलों की धुँध छा रही थी। राजन पथरीली चट्टानों से पग बढ़ाता आश्रम की ओर चल दिया। ज्यों ही वह आश्रम के करीब पहुँचा, लोगों के गाने का शब्द उसे जोरों से सुनाई पड़ने लगा। जब उसने आश्रम में प्रवेश किया तो महात्मा के चेले भजन गा रहे थे। किसी ने भी उनकी ओर नहीं देखा। मूर्छित पार्वती अब भी उसकी बाँहों में थी।
उसने थोड़ी दूर बैठे आदमी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर पुकारा। परंतु उसने भी कोई उत्तर नहीं दिया जैसे उसने देखा ही नहीं और सुनी-अनसुनी कर दी। राजन के क्रोध का पारावार न रहा, वह जोर से चिल्लाया - ‘महात्मा!’
सब मौन हो गए। चकित हो उसे देखने लगे। राजन यह कहते हुए बोला - ‘कहाँ हैं तुम्हारे गुरु? कहाँ हैं तुम्हारे महात्मा?’ अंदर की ओर बढ़ने लगा। एक मनुष्य आगे बढ़कर उसे रोकते हुए बोला-
‘कल प्रातःकाल तक वह किसी से नहीं मिल सकते।’
‘परंतु मुझे अभी मिलना है। मैं एक पल भी प्रतीक्षा नहीं कर सकता। किसी के जीवन का प्रश्न है।’
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