ई-पुस्तकें >> जलती चट्टान जलती चट्टानगुलशन नन्दा
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हिन्दी फिल्मों के लिए लिखने वाले लोकप्रिय लेखक की एक और रचना
राजन झट से उसे हटाकर आगे बढ़ गया, सब चिल्लाए - ‘ऐसा मत करो।’ परंतु राजन न माना और सामने गुफा की ओर बढ़ता ही गया। गुफा के अंदर से प्रकाश बाहर आ रहा था। राजन ने सीधा अंदर ही प्रवेश किया। सामने एक पत्थर के आसन पर महात्मा आँखें मूँदे बैठे थे। राजन ने धीरे-धीरे तीन-चार बार पुकारा - ‘गुरुदेव.... गुरुदेव’ परंतु कोई उत्तर न पाया। वह कुछ और समीप हो गया और जोर से चिल्लाया, ‘महात्माजी....।’
महात्मा ने नेत्र खोले और एक कड़ी दृष्टि से राजन को देखा। फिर दृष्टि पार्वती के चेहरे पर जाकर जम गई। राजन लड़खड़ाते हुए बोला–
‘मजबूरी थी गुरुदेव! आपकी पुजारिन के जीवन का प्रश्न था। आप इसे शीघ्र ही जीवन प्रदान करें। देखिए यह मूर्छित पड़ी है।
‘क्या हुआ?’ महात्मा गंभीर स्वर में बोले।
‘चट्टान से पाँव फिसल गया और गिर पड़ी।’
‘आज की तपस्या शायद किसी का जीवन बचाने को ही है।’
‘जी.... इसी आशा से तो आपके पास आया हूँ।’
महात्मा अपने आसन से उठे। राजन ने उनका संकेत पाते ही नीचे बिछी चटाई पर पार्वती को लिटा दिया। महात्मा ने एक वस्त्र से बहते हुए रक्त को साफ किया... थैली से कोई दवा निकाल उसकी चोट पर लगा दी, रक्त बहना तुरंत बंद हो गया। उसके पश्चात् उन्होंने एक जड़ी बूटी निकाली और पार्वती को सुँघाई, फिर वापस अपने आसन पर बैठते हुए बोले - ‘अभी थोड़ी देर में होश आ जायेगा।’
‘मैं आपका अनुग्रह जीवन भर न भूलूँगा। यदि आप सहायता न करते तो मैं ठाकुर बाबा को जीवन भर मुँह नहीं दिखा पाता....।’
‘कौन हैं ठाकुर बाबा?’
‘पार्वती के दादा – यह उनकी अमानत है।’
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