ई-पुस्तकें >> जलती चट्टान जलती चट्टानगुलशन नन्दा
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हिन्दी फिल्मों के लिए लिखने वाले लोकप्रिय लेखक की एक और रचना
‘नहीं पार्वती! मुझसे भूल हो गई – तुम्हारे हाथ के बने परांठों ने मुझे इतना होश में भी न रखा कि तुम भूखी हो।’
‘सच कहती हूँ मुझे भूख नहीं है।’
‘यह कैसे हो सकता है, तुम मुझसे छिपा रही हो।’
‘यदि हो भी तो तुम क्या कर सकते हो?’
‘अभी घाटी जाकर तुम्हारे लिए खाना ले आऊँ।’
‘सच?’
‘क्यों नहीं, यदि तुम कहो तो आकाश के तारे भी तोड़ लाऊँ।’
‘तो एक बात कहूँ?’
‘क्या?’
‘मिंटो वायलन बजाओ।’
‘परन्तु साथ में तुम्हें नाचना होगा।’
‘इन पहाड़ो पर।’
‘हाँ, प्रकृति ने तुम्हारे आने से पहले ही चट्टानों का फर्श बिछा रखा है।’
पार्वती ने एक दृष्टि उन सफेद चट्टानों पर डाली और राजन ने ‘मिंटो वायलन’ के तार छेड़ दिए। पार्वती नंगे पाँव उन चट्टानों की ओर बढ़ी। उसे ऐसा लगा, जैसे स्वयं देवता बादलों पर आरूढ़ हो उसका नृत्य देखने आ रहे हों। ज्यों ही उसने पथरीली फर्श पर पैर रखा – मानों पाजेब की झंकार गूँज उठी।
वह वायलन की धुन के साथ-साथ नृत्य करने लगी।
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