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जलती चट्टान

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :251
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9579
आईएसबीएन :9781613013069

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‘शायद तुम मुझे डाँटना चाहती हो।’

‘हाँ, परंतु अब विचार बदल दिया है।’

‘वह क्यों?’

‘तरस आ गया।’

‘तरस और मुझ पर।’

‘तुम पर नहीं, तुम्हारे स्नेह पर।’ लजाते हुए पार्वती ने मुँह फेर लिया। राजन पास आकर धीरे से उसके कान तक मुँह ले जाकर बोला -

‘तो मान लूँ कि तुम मुझसे प्रेम करती हो।’

पार्वती नीचे घाटियों की ओर संकेत करते हुए बोली - ‘वह गहराइयाँ देख रहे हो?’

‘हाँ।’

‘यदि जानना चाहते हो कि गहराइयों में क्या-क्या है तो कैसे जानोगे।’

‘नीचे उतर जाऊँगा।’

‘इस प्रकार यदि तुम मेरे दिल की गहराइयों में उतर जाओ तो सब जान जाओगे।’

‘उतर तो जाऊँ, परंतु बाहर से तुमने दिल का द्वार बंद कर लिया तो।’

‘तो क्या हुआ, अंधेरे में पड़े जला करना। शायद तुम्हें ऊपर उठने का मौका मिल सके।’

और एक शरारत भरी मुस्कान पार्वती के होंठों पर खेल गई।

इतने में ही लिफ्ट एक सीमेंट के चबूतरे पर आकर रुक गई। दोनों ने संतोष की साँस ली। एक ओर ऊँची-ऊँची भयानक चोटियाँ और दूसरी ओर उतनी ही नीची घाटियाँ। सीतलवादी के पथरीले मकान दूर से ऐसे प्रतीत हो रहे थे जैसे एक कतार में छोटे-छोटे खिलौने रखे हों। मंदिर के ऊँचे गुम्बद और उसके साथ बलखाती नदी साफ दिखाई दे रही थी। बादल के टुकड़े इकट्ठे हो शायद आकाश को ढँक लेना चाहते थे, अद्भुत दृश्य था, जिसमें भय और सुंदरता दोनों छिपे हुए थे।

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