लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> जलती चट्टान

जलती चट्टान

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :251
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9579
आईएसबीएन :9781613013069

Like this Hindi book 1 पाठकों को प्रिय

253 पाठक हैं

हिन्दी फिल्मों के लिए लिखने वाले लोकप्रिय लेखक की एक और रचना

बिजली का बटन दबाते ही लिफ्ट गहरी और भयानक घाटियों को पार करने लगी। दोनों सलाखों के कमरे में बंद हवा में उड़ने लगे। थोड़ी देर में इतनी बुलंदी पर पहुँच गए कि सचमुच बादलों के टुकड़ों से खेलने लगे। दोनों ने जीवन में पहली बार अनोखी वस्तु देखी थी, जिसे देख-देखकर दोनों के मन प्रसन्नता से भर उठते थे। बादलों की नमी के कारण दोनों के शरीर ठण्डे हो रहे थे। राजन ने पार्वती को अपने बाहुपाश में ले लिया। पार्वती ने अपनी बाँहों को उसके गले में डालते हुए कहा -

‘आखिर मुझे कहाँ लिए जा रहे हो?’

‘इस संसार से दूर।’

‘क्यों?’

‘ताकि तुम्हारे देवता तुम्हारा पीछा न कर सकें।’

‘वह तो सब स्थानों में पहुँच सकते हैं और इतनी दूर ले जा सकते हैं, जो मनुष्य की शक्ति से बाहर है।’

‘हाँ, मनुष्य उतनी दूर लेकर तो नहीं जा सकता – परंतु एक बार हाथ पकड़कर राह भी नहीं छोड़ता।’

‘क्या मालूम छोड़ ही दे।’

‘तो वह मनुष्य न होकर शैतान होता है।’

राजन ने अपने होंठ उसके गालों पर रख दिए। पार्वती ने हाथ खींच लिया और पलटकर राजन की ओर एकटक देखने लगी, अचानक एक बादल के टुकड़े ने दोनों को घेर लिया। पार्वती अवसर देख शीघ्रता से नीचे बैठ परे हो गई। राजन धुँध में पार्वती को टटोलने लगा। पार्वती लिफ्ट की सलाखों से लगी जोर-जोर से हँस रही थी। जब धुँध ने पार्वती को घेर लिया तो राजन ने शीघ्रता से उसे पकड़ लिया। उसके प्यासे होंठ पार्वती के मुख तक पहुँच ही गए। परंतु पार्वती को यह अच्छा न लगा। बोली - ‘राजन, इतना अल्हड़पन अच्छा नहीं।’ और यह कहते हुए जहाँ पार्वती की आँखों में कृत्रिम क्रोध था – वहाँ स्नेह भी। एकबारगी राजन को देखा और आँखें झुका लीं।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book