ई-पुस्तकें >> जलती चट्टान जलती चट्टानगुलशन नन्दा
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हिन्दी फिल्मों के लिए लिखने वाले लोकप्रिय लेखक की एक और रचना
‘तो मैं चली जाऊँ बाबा?’ पार्वती झट से बोल उठी।
‘तुम्हारे बस की बात नहीं। पहाड़ी यात्रा है।’ राजन ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया।
पार्वती को इस उत्तर पर बहुत क्रोध आया। बिगड़कर बोली - ‘शायद तुम नहीं जानते हो कि मैं इन्हीं पहाड़ियों की गोद में पली हूँ।’
बाबा दोनों की बातें सुन रहे थे, बोले - ‘झगड़ा काहे का राजन ठीक कहता है। तुम्हें साथ लिए वह कहाँ जाएगा?’
‘जाता ही कौन है!’ कहकर पार्वती क्रोधित हो अंदर चली गई।
बाबा ने राजन से पूछा - ‘क्या अकेले जा रहे हो?’
‘जी!’
‘तो फिर पार्वती को ले जाने में क्या एतराज है?’
‘एतराज तो कुछ नहीं... यही सोचा कि...।’
‘वह इतनी कोमल नहीं जितनी तुम समझ बैठे हो। बेटा उसका है भी कौन जो उसे साथ ले जाए? फिर कोई सखी-सहेली भी नहीं, जिससे दो घड़ी हँस-खेल ले।’
‘जैसी आपकी आज्ञा।’
राजन पार्वती के कमरे में गया। वह क्रोध में तनी बैठी थी। राजन ने उसकी बाँह पकड़ी और कहने लगा - ‘चलो न देर हो रही है।’
‘मुझे नहीं जाना।’
‘तुम तो कुछ समझती नहीं। यदि बाबा के सामने यूँ न कहता तो जानती हो वे क्या समझते?’
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