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जलती चट्टान

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :251
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9579
आईएसबीएन :9781613013069

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हिन्दी फिल्मों के लिए लिखने वाले लोकप्रिय लेखक की एक और रचना

‘इसी विचार से कि तुम मेरी राह देख रही होगी।’

‘ओह! सच? और राजन मुझे भी बाबा का ध्यान न होता तो शायद सारी रात यूँ ही प्रतीक्षा में बिता देती।’

‘सच, एक बात कहूँ, मानोगी!’

‘क्या?’

‘मेरा विचार है कि आज सीतलवादी की घाटियों और आसपास के स्थानों में घूमा जाए – मेरे साथ चलोगी?’

‘परंतु बाबा...।’

‘उन्हें मैं मना लूँगा।’ यह कहता हुआ राजन बाबा के पास गया। वे अब तक बरामदे में बैठे हुए थे। पार्वती भी धीरे-धीरे आने लगी। बाबा राजन को देखते ही बोले - ‘आज काम से छुट्टी ले रखी है क्या?’

‘नहीं तो, आज सरकारी छुट्टी है।’

‘तो फिर अभी से कहाँ चल दिए... क्यों पार्वती? राजन को क्षमा कर दिया?’

पार्वती उत्तर में मुस्कुरा दी और बाबा फिर राजन से बोले –

‘बेटा खाना खाकर चले जाना।’

‘आज क्षमा चाहता हूँ बाबा, मुझे बाहर जाना है।’

‘कहीं परदेस?’

‘परदेस तो नहीं... सोचा आज थोड़ी सीतलवादी की सैर की जाए। सुना है सामने की पहाड़ी में एक बड़े महात्मा का आश्रम है।’

‘हाँ राजन मन तो मेरा भी करता है, परंतु अब इन बूढ़ी हड्डियों में वैसी शक्ति नहीं रही।’

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