ई-पुस्तकें >> जलती चट्टान जलती चट्टानगुलशन नन्दा
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हिन्दी फिल्मों के लिए लिखने वाले लोकप्रिय लेखक की एक और रचना
बाबा और पुजारी असमंजस में पड़े हुए थे कि आज पार्वती को क्या हो गया है?
मंदिर की दीवारों पर जलते हुए चिराग रिमझिम कर उठे थे। पायल की बढ़ती हुई झंकार उसके लिए एक तूफान साबित हुई, लोगों के हृदय काँप उठे। वायु ने भी जोर पकड़ा, बाबा अपना स्थान छोड़ पार्वती की ओर बढ़े।
और पार्वती को देखा तो ऐसा लगता था कि नाच-नाचकर चूर हो चुकी हो। शरीर पसीने में तर था – फिर भी वह धुन में नाचे जा रही थी। अपने आप में इतना खो चुकी थी कि बाबा की पुकार भी न सुन पाई।
बाबा ने दो बार करीब से पुकारा। अंत में नाचते-नाचते वह देव की मूर्ति के चरणों पर गिर गई।
बाबा पुकार उठे - ‘पार्वती!’
और उसके साथ ही पुजारी, बाबा, मैनेजर आदि उसकी ओर बढ़े – परंतु राजन अब भी दूर खड़ा मुस्कुरा रहा था।
राजन ने एक दृष्टि मंदिर की ऊँची दीवारों पर डाली और मंदिर से बाहर चला गया – बाहर भयानक तूफान था। बादल आकाश में छा गए थे। राजन धीरे-धीरे उस तूफान में मंदिर की सीढ़ियाँ उतर रहा था।
उसे लग रहा था, जैसे उसके अंदर बैठा कोई कह रहा है आज इंसान ने देवता पर विजय पाई है। इंसान हुआ है विजयी और देवता हुआ है पराजित।
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