ई-पुस्तकें >> जलती चट्टान जलती चट्टानगुलशन नन्दा
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हिन्दी फिल्मों के लिए लिखने वाले लोकप्रिय लेखक की एक और रचना
वह ढोलक और अलाप के राग के साथ-साथ नृत्य करती रही। न जाने आज राजन के नेत्रों में ऐसा क्या था कि मंदिर के देवता, गीत का अलाप, ढोलक व घुँघरुओं की रुनझुन कोई भी उसकी आँखों से राजन की सूरत को दूर न कर पाती थी। और वह नीचे जा रही थी।
उसके पाँव की गति ढोलक के शब्द और रागों के अलाप के साथ-साथ बढ़ती गई – मंदिर गूँज उठा।
आज से पहले पार्वती ने कभी ऐसा नृत्य नहीं किया था। उसे ऐसा मालूम हो रहा था जैसे वह केवल राजन के लिए ही नृत्य कर रही है।
उसने और भी उत्साह से नाचना आरंभ कर दिया।
वह राजन का ध्यान छोड़ अपने आपको देवता के चरणों में अर्पित करना चाहती थी।
परंतु...।
उसके एक ओर तो राजन खड़ा मुस्कुरा रहा था और दूसरी ओर देवता क्रोध से पार्वती को देख रहे थे।
राजन की मुस्कुराहट बता रही थी कि आज वह अत्यंत प्रसन्न है।
इधर घुँघरुओं की रुनझुन और तीव्र होती गई। सीतलवादी की हवा ने तूफान का रूप ग्रहण कर लिया। वायु की तीव्रता से घंटियाँ अपने आप बजने लगीं। फूलों की कलियाँ देवता के चरणों में से उड़कर किवाड़ की ओर जाने लगीं। कलियों ने उड़कर जब राजन के कदम चूमे तो वह समझा, सफलता मेरे चरण चूम रही है।
पुजारी ने राग का अलाप समाप्त कर दिया परंतु पार्वती की पायल की झंकार अभी तक उठ रही थी। सब लोग सिर उठा झंकार को सुनने लगे। सबकी दृष्टि पार्वती के कदमों के साथ नाच रही थी।
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