लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> जलती चट्टान

जलती चट्टान

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :251
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9579
आईएसबीएन :9781613013069

Like this Hindi book 1 पाठकों को प्रिय

253 पाठक हैं

हिन्दी फिल्मों के लिए लिखने वाले लोकप्रिय लेखक की एक और रचना

पार्वती समझ गई और मुस्कुराते हुए बोली -

‘नहीं, ऐसी बात तो नहीं, परंतु हर वस्तु अपने स्थान पर ही शोभा पाती है।’

‘तो इसका स्थान...’

‘मेरे बालों में।’ पार्वती राजन की बात काटते हुए बोली और घूमकर अपना सिर उसकी ओर कर दिया। राजन ने प्रेम से वह फूल उसके बालों में खोंस दिया और उसे एक बार चूम लिया। पूजा की घंटी बजी तो दोनों चौंक उठे। राजन मुस्कुराता हुआ एक ओर चला गया। पार्वती पूजा की थाली ले बाहर की ओर बढ़ी। जाते-जाते एक क्षण के लिए रुकी, घूमकर कनखियों से राजन को देखा। राजन अभी मुस्कुराता खड़ा था।

पार्वती धीरे-धीरे डग भरती देवता की मूर्ति की ओर बढ़ी, धरती पर फूल बिछे हुए थे – परंतु फिर उसके पैर डगमगा रहे थे। उसके हृदय की धड़कन उसे भयभीत कर रही थी, जैसे उसने कोई बड़ा पाप किया हो। मूर्ति के करीब पहुँचकर उसने थाली नीचे रख दी तथी फूल उठाकर देवताओं के चरणों में अर्पित करने लगी।

उसके हाथ काँप रहे थे।

ज्यों ही वह देवताओं के सामने झुकी पुजारी ने राग अलापना आरंभ कर दिया। उसके साथ ही सब लोग देवताओं के सामने झुक गए। पार्वती धीरे-धीरे ऊपर उठी परंतु आज उसे ऐसा लग रहा था जैसे देवता उसे क्रोध की दृष्टि से देख रहे हों।

मंदिर की जगमगाहट शायद आज उसे प्रसन्न न कर सकी।

राग के अलाप के साथ-साथ पार्वती ने नृत्य आरंभ कर दिया। नृत्य के मध्य उसने घूमकर देखा... दर्शकों के सिर देवता के सम्मुख झुके थे परंतु दूर किवाड़ के साथ खड़े राजन के मुख पर वही मुस्कुराहट थी। एक बार फिर दोनों की दृष्टि मिल गई और पार्वती बेचैन हो उठी और उसने आँखें मूँद लीं।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book