ई-पुस्तकें >> जलती चट्टान जलती चट्टानगुलशन नन्दा
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हिन्दी फिल्मों के लिए लिखने वाले लोकप्रिय लेखक की एक और रचना
यह कहता हुआ पुजारी बाहर चला गया – पार्वती ने पूजा की थाली उठा ली और उसमें पूजा के लिए फल रख बाहर जाने लगी। अभी उसने पहला कदम उठाया ही था कि पिछले किवाड़ से कोई अंदर आया।
पार्वती ने मुड़कर देखा – राजन खड़ा था। दोनों ने एक-दूसरे को देखा, आँखें मिली और झुक गईं। राजन ने पार्वती की ओर गुलाब का फूल बढ़ाया और उसकी आँखों में आँखें डुबाता-सा खड़ा रह गया।
‘यह क्या?’ पार्वती ने पूछा।
‘प्रेम की भेंट।’
‘तो क्या यह कम था जो तुमने मेरे लिए किया।’
‘वह तो तुम्हारे देवताओं को प्रसन्न रखने के लिए था।’
‘और यह?’
‘यह अपनी प्रसन्नता के लिए।’
‘अच्छा तो लाओ।’
पार्वती के हाथ खाली न देखकर राजन बोला -
‘इन फूलों में रख दूँ क्या?’
‘न... न... यह तो पूजा के फूल हैं जो देवताओं पर चढ़ाए जाएँगे।’
‘तो क्या यह फूल इस योग्य भी नहीं कि साथ रख दिया जाए।’ राजन ने कुछ-कुछ बिगड़ते हुए कहा और अपना हाथ पीछे खींच लिया।
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