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जलती चट्टान

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :251
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9579
आईएसबीएन :9781613013069

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हिन्दी फिल्मों के लिए लिखने वाले लोकप्रिय लेखक की एक और रचना

जब तीनों सीढ़ियों के करीब पहुँचे तो पार्वती रुक गई। सीढ़ियों पर फूलों की कलियाँ बिछी हुई थीं। पार्वती ने एक जलता दीया उठाया और अपनी पूजा की थाली के अन्य दीये जला लिए और थाली उठाकर मंदिर की सीढ़ियों पर चढ़ने लगी। उसके कोमल गुलाबी तलवे उन फूलों की कलियों पर पड़ रहे थे, जो राजन ने उसकी राह में बिछा रखी थीं। वह अपनी दुनिया में खो गई। उसे कोई ध्यान न रहा कि उसके बाबा भी उसके साथ-साथ आ रहे हैं। बाबा भी मौन थे। वे सोचने लगे, पार्वती शायद देवताओं की दुनिया में खो गई है।

परंतु पार्वती के दिल में तो आज दूसरी ही धुन थी। पहले जब वह सीढ़ियों पर चढ़ती तो उसे यूँ लगता था, जैसे देवता उसे अपनी ओर खींच रहे हों, परंतु आज उसे सिवा राजन के किसी दूसरे का ध्यान न था। इन सीढ़ियों पर बिछी एक-एक कली आज उसे राजन की याद दिला रही थी। जब वह बरामदे में पहुँची तो प्रसन्नता से फूली न समाई। कारण, मंदिर की सजावट में कोई कसर न छोड़ी गई थी। ‘सीतलवादी’ की हवा भी फूलों की महक से भर उठी। मंदिर प्रकाश से जगमगा रहा था।

अचानक पार्वती के विचारों का ताँता किसी आवाज ने तोड़ दिया। ये उसके बाबा थे जो पुजारी तथा कंपनी के मैनेजर से बातों में संलग्न थे। मैनेजर ने शायद आज पहली बार पार्वती को देखा था।

‘यह मेरी पार्वती है....।’ बाबा ने मुस्कुराते हुए मैनेजर से जो अब तक पार्वती को टकटकी बाँधे देख रहा था, कहा। मैनेजर ने हाथ जोड़कर उसे नमस्ते की परंतु उत्तर में पार्वती घबरा-सी गई। उसके हाथ रुके हुए थे। तुरंत ही उसने फूलों की टोकरी बाबा को और थाली रामू के हाथों में देते हुए अपने हाथ उठाए और मुस्कुराते हुए नमस्ते का उत्तर दिया।

यह सब कुछ इस तरह हुआ कि तीनों जोर से हँस पड़े। पार्वती लाज के मारे गुलाबी ओढ़नी और पूजा की सामग्री लेती हुई मंदिर की ओर जाने लगी। उसके कानों में पुजारी के शब्द पड़े। वह मैनेजर और बाबा से कह रहा था-

‘आज यह सब कुछ जो आप देख रहे हैं, पार्वती की कृपा से हुआ।’

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