ई-पुस्तकें >> जलती चट्टान जलती चट्टानगुलशन नन्दा
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हिन्दी फिल्मों के लिए लिखने वाले लोकप्रिय लेखक की एक और रचना
वह यह सोच रही थी कि उसके कानों में बाबा की आवाज सुनाई दी – उसने झट से श्रृंगारदान बंद किया और साड़ी का पल्लू ठीक करते-करते कमरे से बाहर आ गई। बाबा उसे सजा-धजा देखकर मुस्कुरा पड़े। पार्वती ने लज्जा के मारे मुँह फेर लिया। बाबा रह न सके, तुरंत ही उसे प्रेमपूर्वक गले से लगा लिया। उनके नेत्रों में ममता के आँसू उमड़ आए। वे उसे देख ऐसे प्रसन्न हो रहे थए जैसे माली अपने बढ़ते हुए पौधों को देख प्रसन्न हो उठता है। पार्वती ने पास खड़े रामू से दुशाला ले बाबा को ओढ़ा दिया। एक हाथ में फूलों की टोकरी तथा दूसरे में पूजा की थाली ले बाबा के साथ मंदिर की ओर बढ़ती। रामू भी उसके पीछे-पीछे हो लिया।
बाबा और रामू दोनों प्रसन्नचित्त दिखाई दे रहे थे।
और-
पार्वती के मुख पर उदासी और घबराहट थी।
ज्यों ही वे आबादी से निकलकर मंदिर की ओर बढ़ने लगे, पार्वती के मुख पर उदासी की रेखाएँ प्रसन्नता में बदल गई। मंदिर की दीवार तथा चबूतरे प्रकाश से जगमगा रहे थे। ऐसा लग रहा था मानों संसार भर का प्रकाश किसी ने इन पहाड़ियों पर एकत्रित कर दिया हो। मंदिर में मनुष्यों का कोलाहल सुनाई पड़ रहा था। ज्यों-ज्यों मंदिर करीब आ रहा था, पार्वती के दिल की धड़कन बढ़ती जा रही थी। वह समझ नहीं पा रही थी कि यह क्या हो रहा था उसे।
अब तो वह मंदिर में शीघ्र ही पहुँचने के लिए बेचैन हो उठी। न जाने आज उसकी आँखें क्या देखने वाली हैं?
थोड़ी देर में तीनों मंदिर आ पहुँचे। बड़े द्वार पर लोगों की काफी भीड़ थी। पार्वती ने बाबा का हाथ थामा और उन सीढ़ियों की ओर ले गई, जहाँ से वह प्रतिदिन मंदिर जाती थी। यह मार्ग आम लोगों के लिए न था, केवल पुजारी तथा नदी को जाने वाले लोग ही इधर से आते-जाते थे। उन सीढ़ियों पर भी दीये जल रहे थे।
राजन ने शायद इस विचार से जला रखे थे कि यह वह रास्ता है, जहाँ दोनों का प्रथम मिलन हुआ था।
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