ई-पुस्तकें >> जलती चट्टान जलती चट्टानगुलशन नन्दा
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हिन्दी फिल्मों के लिए लिखने वाले लोकप्रिय लेखक की एक और रचना
‘जी बाबा सजावट ऐसी हुई कि जिसे देखते ही आप आश्चर्य में पड़ जाएँ।’
‘तुम्हारे नृत्य की या मंदिर की?’
‘मंदिर की।’
‘परंतु रामू भी तो अभी पुजारी से मिलकर आया है।’
‘तो क्या कहा इसने?’
‘कि पार्वती तो सवेरे से आई ही नहीं।’
‘आई नहीं?’ पार्वती कुछ चुप हो गई और बाबा के मुख की ओर देखने लगी, जो अपने उत्तर की प्रतीक्षा कर रहे थे। पार्वती बाबा को देख यूँ बोली -
‘ओह! अब समझी।’
‘क्या?’
‘बाबा सच कहूँ।’
‘कैसा सच?’
‘पुजारी ने इसलिए कहा था कि कहीं आप मुझे बुला न लें और उसकी सजावट अधूरी रह जाए।’
‘पगली कहीं की! भला मैं ऐसा क्यों करने लगा?’
‘उसने तो यही सोचा होगा, बाबा!’
‘अच्छा सोचा! जरा-सा झूठ बोलकर दो घंटे से मुझे बेचैन कर रखा है।’
‘बाबा आपको मालूम है कि वह मेरे बिना मंदिर का काम किसी दूसरे से नहीं करवाता और न ही किसी पर विश्वास करता है।’
‘तब तो दोनों ने मिलकर मंदिर में बिल्कुल परिवर्तन कर दिया होगा।’
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