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जलती चट्टान

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :251
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9579
आईएसबीएन :9781613013069

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हिन्दी फिल्मों के लिए लिखने वाले लोकप्रिय लेखक की एक और रचना

‘प्रेम का’ कहकर उसकी उंगलियाँ अपनी गर्म हथेलियों में दबा लीं।

‘तुम्हें तो प्रेम के सिवा कुछ आता ही नहीं।’

इतना कहकर वह चुप हो गई।

नाव धीरे-धीरे नदी के बहाव में स्वतः ही बढ़ी जा रही थी। दुपहरी की धूप में पार्वती के सुनहरे बाल चमक रहे थे।

राजन तो उसी के चेहरे और बालों की सुंदरता को अपलक नयनों से निहारे जा रहा था। पार्वती ने मुख ऊपर उठाया। आँखों से आँखें मिलते ही लजा-सी गई, फिर मुँह नीचे करके कहने लगी - ‘ज्वर कितने प्रकार का होता है, यह तो मैं जानती नहीं परंतु इतना अवश्य सुना है कि होता भयानक है।’

‘यह तो तुमने ठीक सुना है। भयानक ऐसा कि पीछे जिसके पड़ जाए छोड़ने का नाम तक नहीं लेता।’

‘लो बातों ही बातों में हम मंदिर तक पहुँच गए।’

‘इतनी जल्दी... अच्छा तो नाव किनारे बाँध दो।’ यह कहते हुए राजन ने पतवार हाथ में लेकर नाव तट पर लगा दी। उतरते ही दोनों मंदिर की ओर बढ़ने लगे। सीढ़ियों को समीप पहुँचते ही पार्वती रुक गई और कहने लगी -

‘समझ में नहीं आ रहा क्या करूँ?’

‘ऐसी क्या उलझन है?’

‘रात्रि को मंदिर में पूजा है, पुजारी सजावट के लिए राह देख रहा होगा – और घर में बाबा।’

‘यही न कि हमें देर हो गई।’

‘हाँ यही तो।’

‘राजन कुछ समय तो चुप रहा, फिर बोला – सुनो!’

‘क्या?’

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