ई-पुस्तकें >> जलती चट्टान जलती चट्टानगुलशन नन्दा
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हिन्दी फिल्मों के लिए लिखने वाले लोकप्रिय लेखक की एक और रचना
नाव अपने आप जल के प्रवाह की ओर बढ़ने लगी। राजन ने पार्वती को प्रेमपूर्वक गले लगा लिया। दोनों खामोश थे, शायद उनकी खामोशी देख नदी की लहर भी खामोश हो चुकी थी। परंतु दोनों के हृदय में हलचल-सी मची हुई थी।
पार्वती ने राजन का हाथ अपने हाथों में ले लिया और उसकी उंगलियों से खेलने लगी। राजन अपनी उंगलियाँ उसके होंठों तक ले गया। पार्वती मुस्कुराती रही फिर तुरंत ही उसने मुँह खोल उंगली को जोर से दाँतों तले दबा लिया। राजन चिल्ला उठा और झट से हाथ खींच उंगली अपने मुँह में रख चूसने लगा।
पार्वती ने हाथ अपनी ओर खींचा और बोली -
‘लाओ ठीक कर दूँ।’ कहकर हथेली से सहलाने लगी।
राजन हँस पड़ा और बोला –
‘यह भी खूब रही – पहले काट खाया, अब मरहम लगाने चली हो।’
‘राजन तुम्हें क्या पता है कि इस प्रकार काटने और फिर उसी को सहलाने में कितना रस आता है हम औरतों को?’
राजन ने इसका कोई उत्तर नहीं दिया – केवल मुस्कुरा दिया।
पार्वती सशंक सी होती हुई बोली –
‘अरे तुम्हारे हाथ तो यूँ जल रहे हैं जैसे ज्वर हो।’
‘तुमने अब जाना?’
‘तो क्या।’
‘यह तो जाने कितने समय से यूँ ही जल रहे हैं।’
‘और कुछ दवा ली?’
‘दवा? इसकी दवा तो तुम हो पार्वती।’
‘मैं और दवा? तब तो इसका इलाज अपने आप हो गया, परंतु यह ज्वर कैसा?’
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