ई-पुस्तकें >> जलती चट्टान जलती चट्टानगुलशन नन्दा
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हिन्दी फिल्मों के लिए लिखने वाले लोकप्रिय लेखक की एक और रचना
तभी राजन के पैर का दबाव एक पत्थर पर पड़ा। पत्थर धड़धड़ाता हुआ नीचे की ओर जा गिरा। पार्वती चौंक पड़ी, उसका मुँह पीला पड़ गया। मस्त चिड़िया की भांति चोंच खोल वह उस ओर देखने लगी। राजन को देखते ही उसका पीला मुँह लाज के मारे आरक्त हो उठा। सिर झुकाए काँपती-सी बोली –‘राजन तुम... तुम... तुम यहाँ।’
‘हाँ पार्वती! मैंने बहुत चाहा कि मैं न आऊँ, पर रुक नहीं सका पार्वती! मैं समझ नहीं पाया कि यह मुझे क्या हो गया?’ कहते-कहते वह चुप हो गया। राजन पत्थर के पीछे से निकला और पार्वती की ओर बढ़ने लगा। अभी उसने पहला ही पग उठाया था कि पार्वती चिल्लाई –‘राजन!’
‘राजन’ शब्द सुनते ही वह रुक गया। पार्वती ने उसी समय एक पत्थर उठाया और बोली –‘यदि एक पग भी मेरी ओर बढ़ाया तो इसी पत्थर से तुम्हारा सिर फोड़ दूँगी।’
राजन शब्द सुनते ही मुस्कुराया, फिर कहने लगा –‘बस इतनी सी सजा, तो लो मैं उपस्थित हूँ।’
यह कहकर वह फिर बढ़ने लगा। पार्वती ने पत्थर मारना चाहा परंतु उसके हाथ काँप उठे और पत्थर वहीं धरती पर गिर पड़ा। जब राजन को करीब आते देखा तो वह घबराने लगी। शीघ्रता से पाँव पानी में रख वह नदी में उतर गई। राजन वस्त्रों सहित नदी में कूद पड़ा। पार्वती मछली की भांति जल में इधर-उधर भागने लगी। अंत में राजन ने पार्वती को पकड़ लिया और बाहुपाश में बाँध जल से बाहर ले आया। पार्वती की पुतलियों में तरुणाई छा गई थी। उसने एक बार राजन की ओर देखा फिर लाज के मारे आँखें झुका लीं। वह अभी तक राजन के बाहुपाश में बँधी थी।
राजन ने पूछा –‘पार्वती! तुम्हें यह क्या सूझी?’
‘सोचा कि तुम्हें तो लाज नहीं – मैं ही डूब मरूँ।’
‘तुम नहीं जानती पार्वती... मैं तो तुमसे भी पहले डूब चुका हूँ।’
‘क्या हवा में?’
‘नहीं तुम्हारी इन मद भरी आँखों के अथाह सागर में जिनसे अभी तक प्रेम रस झर रहा है।’
‘राजन!’ कहते-कहते उसके नेत्र झुक गए। राजन ने काँपते हुए उसे सीने से लगा लिया।
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