ई-पुस्तकें >> जलती चट्टान जलती चट्टानगुलशन नन्दा
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हिन्दी फिल्मों के लिए लिखने वाले लोकप्रिय लेखक की एक और रचना
‘तो क्या तुमने भी पूजा आरंभ कर दी।’
‘जी, आपके संग का तो प्रभाव होना ही था।’
‘तो हम समझें कि हमारे संग से पत्थर भी द्रवित हो उठे। जाओ भगवान् तुम्हारी कल्याण करे।’
राजन ने एक बार और प्रणाम किया और हाथों में फूल लिए ड्योढ़ी से बाहर हो लिया। बाहर आते ही वह एक ओर छिप गया। उसकी दृष्टि द्वार पर टिकी थी। थोड़ी ही प्रतीक्षा के बाद ड्योढी के किवाड़ खुले और पार्वती हाथ में धोती लिए बाहर आई। उसने चारों ओर घूमकर देखा, जब उसे विश्वास हो गया कि वहाँ कोई नहीं तो वह नदी की ओर चल दी। राजन वहीं खड़ा रहा। जाते-जाते पार्वती ने दो-तीन बार मुड़कर देखा और फिर शीघ्रता से आगे बढ़ने लगी। जब वह ओट में हुई तो राजन उसका पीछा करने लगा।
पीछा करते-करते वह मंदिर तक जा पहुँचा। पार्वती सीढ़ियों के पास पल-भर रुकी उन्हें खाली देख मुस्काई और नीचे मंदिर की ओर उतर गई। घाट पर अभी तक लोग स्नान कर रहे थे। राजन वहीं खड़ा पार्वती को देखता रहा। ज्यों ही वह नदी के किनारे-किनारे चलने लगी तो वह भी शिलाओं के पीछे छिपा-छिपा उसी ओर बढ़ने लगा। पार्वती स्त्रियों वाले घाट पर भी न रुकी और एकांत की खोज में बढ़ती गई। राजन बराबर उसका पीछा कर रहा था। थोड़ी ही देर में वह घाट से काफी दूर निकल गई और नदी में पड़े पत्थरों पर पग रखती हुई दूसरी ओर चली गई। राजन शीघ्रता से एक बड़े पत्थर के पीछे छिप गया और पार्वती को देखने लगा।
पार्वती नदी की ओर मुख किए उछलती लहरों को देख रही थी। समीप ही एक छोटी-सी नाव पड़ी थी। नाविक का कहीं दूर तक कोई चिह्न नहीं था, यों जान पड़ता था, जैसे उसे यह एकांत स्थान मन भा गया हो।
पार्वती ने एक बार चारों ओर देखा – एक लंबी साँस ली और नदी किनारे बैठ अपने पाँव जल में डाल दिए, परंतु तुरंत ही निकाल लिए शायद जल अत्यंत शीतल था। वह उठ खड़ी हुई और अपने बालों को खोल डाला। जब उसने जोर से अपने सिर को झटका दिया तो लंबे-लंबे बाल हवा में लहराने लगे। उसने अच्छी तरह से धोती को अपनी गर्दन पर लपेट लिया तथा नीचे के वस्त्र उतार शिला पर फेंक दिए, जिसके पीछे खड़ा राजन सब देख रहा था। राजन ने झट से सिर नीचे कर लिया। जब धीरे-धीरे उसकी दृष्टि ऊपर उठी तो पार्वती की लंबी-लंबी उंगलियाँ उसकी चोली के बंधन खोल रही थीं।
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