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जलती चट्टान

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :251
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9579
आईएसबीएन :9781613013069

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हिन्दी फिल्मों के लिए लिखने वाले लोकप्रिय लेखक की एक और रचना

‘हाँ वह कालिमा न थी, बल्कि किसी के नेत्रों से निकला काजल था।’

राजन ने बात बदलते हुए पूछा - ‘नदी स्नान करने चलोगी?’

‘तुम्हारे संग!’ इतना कहकर जोर-जोर से हँसने लगी।

‘इसमें हँसने की क्या बात है? यानि हम दोनों नहीं जा सकते तो जाओ अकेली।’

‘ऊँ हूँ।’

‘अकेली भी नहीं, किसी के साथ भी नहीं, क्या अनोखी पहेली है।’

‘नहीं, नहीं मुझे जाना ही नहीं।’

‘अरे आज तो पूजा है।’

‘हाँ राजन, पूजा का नृत्य देखना हो तो आज...।’

‘तो तुम नाचोगी क्या?’ वह बात काटते हुए बोला।

‘हाँ परंतु देवताओं से सम्मुख।’

‘तो इंसान क्या करेंगे?’

‘लुक-छिपकर मंदिर के किवाड़ों से झाँकेंगे।’

‘यदि अंदर आ गए तो?’

‘तो क्या? देवताओं को प्रणाम कर कहीं कोने में जा बैठेंगे।’

‘नर्तकी नृत्य में बेसुध हो कहीं देवताओं को छोड़ मनुष्य की ओर न झुक जाएँ।’

‘असंभव! शायद तुम्हें ज्ञात नहीं कि पायल की रुन-झुन, मन के तार और देवताओं की पुकार में एक ऐसा खिंचाव है, जिसे तोड़ना मनुष्य के बस का नहीं। मनुष्य उसे नहीं तोड़ पाता।’

‘तो हृदय को बस में रखना, कहीं भटक न जाए।’

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