ई-पुस्तकें >> जलती चट्टान जलती चट्टानगुलशन नन्दा
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हिन्दी फिल्मों के लिए लिखने वाले लोकप्रिय लेखक की एक और रचना
‘नदी स्नान को गए होंगे। पूजा का त्योहार है। हाँ तुम्हें आज कथा की क्या सूझी?’
‘समय बदल रहा है, लोग देवताओं को छोड़ इंसानों पर फूल चढ़ाने लगे हैं तो मैंने सोचा आज मैं भी जरा देवताओं की लीला सुन लूँ।’
पार्वती लजाकर बोली –‘कहीं सुनते-सुनते देवता बन बैठे तो?’
‘तो क्या? फूल चढ़ाने तो प्रतिदिन आया करोगी।’
‘न बाबा, मेरे फूल मुरझाने के लिए नहीं, यह तो उसे भेंट होंगे जो मुरझाने न दे।’
‘कोई ग्रहण करने वाला मिला भी?’
‘ऊँ हूँ।’
‘पार्वती! आज रात न जाने कोई भूले से मेरे बिछावन पर फूल रख गया। पहले तो मैं देखते ही असमंजस में पड़ गया।’
‘सो क्यों?’
‘यूँ लगता था मानों मुझे डाँट रहे हों परंतु जब मैं उनके समीप गया तो जानती हो उन्होंने क्या कहा?’
‘यही कि इतनी देर से क्यों लौटे?’
‘नहीं.... पहले तो वह मुस्कुराए और फिर बोले – राजन! हमें यूँ अकेला छोड़कर न जाना।’
‘चलो हटो!’ पार्वती ने लजाते हुए उत्तर दिया और उठकर बाहर जाने लगी। राजन रोकते हुए बोला-
‘जानती हो, लिखने वाले को लेखनी न मिली तो कोयले की कालिमा से ही लिख दिया।’
‘अच्छा आपकी दृष्टि वास्तविकता को न पहचान सकी।’
‘तो क्या?’
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