ई-पुस्तकें >> जलती चट्टान जलती चट्टानगुलशन नन्दा
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हिन्दी फिल्मों के लिए लिखने वाले लोकप्रिय लेखक की एक और रचना
सामने बिछान पर फूल फैले हुए थे।
उसके मुख की आकृति प्रसन्नता में विलीन हो गई। परंतु जैसे ही वह बिस्तर के पास गया, वहीं फूलों में पड़ा एक पत्र पाया, राजन ने झट से उसे उठा लिया और पढ़ने लगा।
‘आशा करती हूँ तुम मुझे यूँ अकेला छोड़कर न जाओगे। -पार्वती’
राजन ने पत्र प्रेमपूर्वक हृदय से लगा लिया और उसी शैया पर लेट गया। प्रातःकाल पूजा की छुट्टी थी। उसने चाहा कि आज देर तक सोएगा परंतु बेचैन हृदय को चैन कहाँ, तड़के ही उठ बैठा। बाहर अभी काफी अँधेरा था, आकाश पर सितारें चमक रहे थे। राजन ने थोड़ा किवाड़ खोला और बाहर झांकने लगा। आँगन में ठाकुर बाबा खड़े शायद कहीं जाने की चिंता में थे। आज पूजा के दिन वह मुँह अँधेरे ही नदी नहाने जा रहे थे। रामू भी उनके साथ था।
जब दोनों बाहर चले गए तो राजन शीघ्रता से बाहर आ गया और ड्योढ़ी के किवाड़ खोल अंदर देखने लगा। दोनों शीघ्रता से नदी की ओर बढ़े जा रहे थे, जब वे काफी दूर निकल गए तो राजन ने ठंडी साँस ली और दबे पाँव पार्वती के कमरे में पहुँचा।
किवाड़ खुले थे और पार्वती संसार से बेखबर मीठी नींद सो रही थी। राजन चुपके से उसके बिस्तर के समीप जा रुका।
प्रातःकाल की शीतल वायु खिड़की से आ-आकर पार्वती के बालों से खिलवाड़ कर रही थी। आज भी उस दिन की तरह उसकी लटें उसके माथे पर आ रही थीं। राजन से रहा न गया और लट सुलझाने लगा। माथे पर उंगलियों का छूना था कि पार्वती चौंक उठी। राजन को अपने समीप देखकर घबरा-सी गई तथा लपककर पास रखी ओढ़नी गले में डाल ली।
‘शायद तुम डर गईं?’ राजन ने उसे घबराए हुए देख कर कहा।
‘नहीं तो... परंतु।’
‘बात यह हुई कि आज नींद समय से पहले खुल गई। सोचा बाबा कथा कर रहे होंगे चलकर दो घड़ी उनके पास हो आऊँ, परंतु वे चले गए।’
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