लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> जलती चट्टान

जलती चट्टान

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :251
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9579
आईएसबीएन :9781613013069

Like this Hindi book 1 पाठकों को प्रिय

253 पाठक हैं

हिन्दी फिल्मों के लिए लिखने वाले लोकप्रिय लेखक की एक और रचना

सामने बिछान पर फूल फैले हुए थे।

उसके मुख की आकृति प्रसन्नता में विलीन हो गई। परंतु जैसे ही वह बिस्तर के पास गया, वहीं फूलों में पड़ा एक पत्र पाया, राजन ने झट से उसे उठा लिया और पढ़ने लगा।

‘आशा करती हूँ तुम मुझे यूँ अकेला छोड़कर न जाओगे। -पार्वती’

राजन ने पत्र प्रेमपूर्वक हृदय से लगा लिया और उसी शैया पर लेट गया। प्रातःकाल पूजा की छुट्टी थी। उसने चाहा कि आज देर तक सोएगा परंतु बेचैन हृदय को चैन कहाँ, तड़के ही उठ बैठा। बाहर अभी काफी अँधेरा था, आकाश पर सितारें चमक रहे थे। राजन ने थोड़ा किवाड़ खोला और बाहर झांकने लगा। आँगन में ठाकुर बाबा खड़े शायद कहीं जाने की चिंता में थे। आज पूजा के दिन वह मुँह अँधेरे ही नदी नहाने जा रहे थे। रामू भी उनके साथ था।

जब दोनों बाहर चले गए तो राजन शीघ्रता से बाहर आ गया और ड्योढ़ी के किवाड़ खोल अंदर देखने लगा। दोनों शीघ्रता से नदी की ओर बढ़े जा रहे थे, जब वे काफी दूर निकल गए तो राजन ने ठंडी साँस ली और दबे पाँव पार्वती के कमरे में पहुँचा।

किवाड़ खुले थे और पार्वती संसार से बेखबर मीठी नींद सो रही थी। राजन चुपके से उसके बिस्तर के समीप जा रुका।

प्रातःकाल की शीतल वायु खिड़की से आ-आकर पार्वती के बालों से खिलवाड़ कर रही थी। आज भी उस दिन की तरह उसकी लटें उसके माथे पर आ रही थीं। राजन से रहा न गया और लट सुलझाने लगा। माथे पर उंगलियों का छूना था कि पार्वती चौंक उठी। राजन को अपने समीप देखकर घबरा-सी गई तथा लपककर पास रखी ओढ़नी गले में डाल ली।

‘शायद तुम डर गईं?’ राजन ने उसे घबराए हुए देख कर कहा।

‘नहीं तो... परंतु।’

‘बात यह हुई कि आज नींद समय से पहले खुल गई। सोचा बाबा कथा कर रहे होंगे चलकर दो घड़ी उनके पास हो आऊँ, परंतु वे चले गए।’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai